Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

२९०

समाधानः- गुरुदेव तो मार्ग बताये। जो साधना करते हैं वह मार्ग बताते हैं। उसमें जिसकी जितनी योग्यता हो उस अनुसार असर होती है। दूसरा कोई तीरे या न तीरे, सच्चा मार्ग... गुरुदेव जैसे जागे वे मार्ग बताये। दूसरोंको असर होनी, वह उसकी योग्यता आधारित है। बहुत जीव ऐसे हैं, जिसकी रुचि तो पलट जाती है। जो रुचि पलट जाती है, जो मान्यता पलट जाती है, अकेली क्रियामें धर्म मानते थे, उसमेंसे धर्म कोई अलग है, ऐसी रुचि तो बहुत लोगोंकी पलट जाती है। बाकी आचरण कैसा हो, वह (योग्यता पर निर्भर करता है)। परन्तु अंतर रुचि पलट जाय ऐसे तो बहुत जीव होते हैं।

मुमुक्षुः- ये जो जैनीझम है, उसमें इतनी तरहके हैं, कि हम जो युवा वर्ग है, हमें बहुत बार समझमें नहीं आता है। क्योंकि इतने गूट हो गये हैं कि हम युवा वर्गको समझमें नहीं आता है।

समाधानः- (जैनदर्शन) भिन्न-भिन्न नहीं है, गूट हो तो भी। बाहरके गूटको एक ओर रख दो। अंतरमें भेदज्ञान करके आत्माको पहचानना वह एक ही मार्ग है। गुरुदेवने वह कहा है और शास्त्रमें वह आता है। अन्दरमें स्वानुभूति करके आत्माको भिन्न जानना, भेदज्ञान करके उसमें लीनता करनी, उसमें प्रतीत करनी वही मुक्तिका मार्ग है। दूसरा कोई मुक्तिका मार्ग नहीं है। उसमें बीचमें सच्चे देव-गुरु-शास्त्र शुभ परिणाममें होते हैं। अन्दर शुद्धात्मा-आत्माको भिन्न पीछानना। उसकी प्रतीत, उसकी लीनता, उसकी स्वानुभूति कैसे हो, उसका प्रयत्न करना, वह एक ही मार्ग है, दूसरा कोई मार्ग नहीं है।

मुमुक्षुः- लेकिन जैनिझममें क्यों सब एक नहीं सकते? क्योंकि जब तक हम एक नहीं होंगे, तब तक एक प्रकारसे सोसायटीमें असर तो होती ही है न। हम सोसोयटीके तौर पर, हम सब बनिये कहलायें, जैन कहलायें, जैनोंका एक पंथ हो जाय तो हमारे देशको फायदा होगा। .. उसमें तो कोई शंका है ही नहीं। परन्तु साथ-साथ सोसायटीमें जो लोग रहते हैं, उनका कुछ फायदा होना चाहिये न। हम लोग ही जैनमें गूट बनायेंगे और कहेंगे कि...

समाधानः- .. स्वयं अपना कर सकता है। बाहरका होना, नहीं होना वह (अपने हाथकी बात नहीं है)। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र हैं। कोई द्रव्यको बदलना अपने हाथकी बात नहीं है। बडे महापुरुष हों, वे भी उपदेश देकर चले जाते हैं। किसीको बदलना अपने हाथकी बात नहीं है।

गुरुदेवने सबको उपदेश दिया। उनके उपदेशका ऐसा निमित्त कि कितनोंका उपादान बदल गया। दूसरेको कोई बदल सके, वह किसीके हाथकी बात नहीं है। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र हैं। कोई समाजको हम बदल सके, वह कोई हाथकी बात नहीं है। वह तो