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स्वतंत्र है। कैसे बदलना वह कोई द्रव्य किसीको कुछ कर नहीं सकता। मात्र स्वयं भाव करे। उसे उपदेश देकर छूट जाय, बाकी उसे बदल सके, किसीका नहीं कर सकता। स्वयं अपना कर सकता है। महा तीर्थंकर हो गये, वे उपदेश देते हैं। बाकी प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्ररूपसे बदलते हैं। किसीको बदल नहीं सकते। कुछ बाहरका करना वह किसीके हाथकी बात नहीं है।
मुमुक्षुः- .. अशुद्ध है, ऐसा कहनेमें आता है। अनादिसे यानी उसकी शुरूआत नहीं है, तबसे वह अशुद्ध है। .. कोई कालमें, किसी परिस्थितिमें वह अशुद्ध हुयी और वह अशुद्ध हो गया है, उसे अपने प्रयत्न करे...
समाधानः- अनादिसे अशुद्ध है। द्रव्य शुद्ध है, परन्तु पर्यायमें अशुद्धता है। यदि शुद्ध हो और बादमें अशुद्ध हो, ऐसा नहीं होता। जो शुद्ध वस्तु हो वह अशुद्ध कैसे हो? द्रव्यसे शुद्ध है, परन्तु पर्यायमें अशुद्धता है। यदि शुद्ध हो और बादमें अशुद्ध हो तो फिर शुद्ध होकर अशुद्ध बन जाय, ऐसे ही शुद्ध और अशुद्ध चलता रहे।? मुक्ति होनेके बाद कभी अशुद्ध होता ही नहीं। अनादिका अशुद्ध। जैसे सुवर्ण, अनादि कालसे जैसे सुवर्ण और पाषाण दोनों खानमें इकट्ठे होते हैं। बादमें उसे ताप देनेसे भिन्न पड जाते हैं।
ऐसे जीव द्रव्यसे शुद्ध है, परन्तु पर्यायमें जो अशुद्धता है वह अनादिसे है। परन्तु उसका पुरुषार्थ करनेसे आत्माकी शुद्ध पर्याय प्रगट होती है। पुदगल वस्तु भी वैसे सुवर्ण और पाषाण इकट्ठे होते हैं तो उसे ताप देते-देते भिन्न हो जाते हैं।
वैसे आत्मा और कर्म अनादिसे साथमें हैं। उसमें जीवको पर्यायमें अशुद्धता हुयी है। परन्तु पुरुषार्थका ताप देनेसे वह शुद्ध पर्यायरूप (परिणमता है)। फिर शुद्ध सुवर्ण बन जाय फिर कभी पाषाणमें मिश्रित नहीं हो जाता। शुद्ध हो जानेके बाद, मुक्त होनेके बाद पुनः संसार नहीं होता।
मक्खन ऊपर जाय, फिर उसका घी बने तो फिरसे घीका मक्खन नहीं बनता। वैसे सुवर्ण और पाषाण एकसाथ है, वैसे जीव और कर्म अनादिसे साथमें ही हैं और जीवकी पर्यायमें अशुद्धता है। द्रव्य-वस्तु, मूल वस्तुमें अशुद्धताका प्रवेश नहीं हुआ है। तो-तो शुद्ध होवे ही नहीं। द्रव्य मूलमें अशुद्धता नहीं है, परन्तु पर्यायमें-उसकी अवस्थामें अशुद्धता है।
मुमुक्षुः- और वह अनादिसे है।
समाधानः- हाँ, अनादिसे है।
मुमुक्षुः- अनादिसे हो तो फिर पर्याय भी...
समाधानः- (पर्यायमें) अशुद्धता है, वस्तुमें नहीं है। पर्याय है इसलिये पलट सकती