अमृत वाणी (भाग-४)
२९२ है, बदल सकती है। सुवर्ण जो अशुद्ध है, लेकिन उसे ताप देेनेसे सुवर्ण शुद्ध होता है। वैसे पुरुषार्थ करनेसे आत्मामें शुद्ध पर्याय प्रगट होती है।
मुमुक्षुः- इसलिये दूसरे धर्मसे यह एक अलग बात है।
समाधानः- हाँ, अलग बात है।
मुमुक्षुः- कि आत्मा ही, वेद धर्म गिनता है कि आत्मा ही है और अनादि है, अनन्त है, ऐसा गिनते हैं। परन्तु पर्याय...
समाधानः- पुरुषार्थ करके स्वानुभूति प्रगट हो और केवलज्ञान हो, बादमें अशुद्धता होती ही नहीं। ऐसा वस्तुका स्वभाव ही है।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!