Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

१७९

२९५

मुमुक्षुः- आप तो महान हैं।

समाधानः- हमारे स्वयंवरमें आप पधारना। ऐसे देव-गुरु-शास्त्र आप पधारना। प्रवचनसारमें आता है।

मुमुक्षुः- हाँ, आपने लिखा है। बोले थे वह इसमें लिखा है।

समाधानः- साधना करने निकले वहाँ भावना तो ऐसी ही होती है न। देव- गुरु-शास्त्र साथमें हों। अभ्यास करनेसे प्रगट होता है। छोटीपीपरका गुरुदेव कहते थे न, घीसनेसे उसका स्वभाव प्रगट होता है। वैसे बारंबार ज्ञायकका अभ्यास करनेसे उसका स्वभाव प्रगट होता है।

मुमुक्षुः- विचारधारामेें बारंबार लेना?

समाधानः- बारंबार। अंतरमें, वास्तवमें तो अंतरसे ग्रहण करे तब हो ऐसा है। फिर भी जब तक नहीं होता तब तक विचारधारामें आता है।

मुमुक्षुः- अंतरमें अर्थात माताजी कैसे?

समाधानः- उसका स्वभाव पहचानकर ग्रहण करना कि यह ज्ञायक स्वभाव सो मैं हूँ और यह विभाव सो मैं नहीं हूँ। ऐसे स्वभावमेंसे पहचानना। उसके अस्तित्वमेंसे पीछाने।

मुमुक्षुः- हाँ जी। अस्तित्व तो वर्तमान पर्याय जो ख्यालमेंं आती है..

समाधानः- वह पर्याय है, परन्तु मूल द्रव्यको पहचानकर। पर्याय है, लेकिन उसमें पहचाननेका आत्माको है। पर्याय जो दिखती है, क्षणमात्र मैं नहीं हूँ, मैं तो शाश्वत हूँ। जो ज्ञानकी पर्याय दिखती है उस पर्याय जितना ही मैं नहीं हूँ, परन्तु मैं तो शाश्वत हूँ। इस प्रकार स्वयंको अंतरमेंसे ग्रहण करे। निश्चय करे तो स्वयं अंतरमें सूक्ष्म होकर ग्रहण कर सकता है। अपना स्वभाव है इसलिये।

मुमुक्षुः- ऐसा होता है कि देव-गुरु-शास्त्र, वांचन, विचार आदि बहुत प्रिय लगता है, उसके सिवा कुछ रुचता नहीं। फिर भी आगे नहीं चलता है। ऐसा रहा करता है। उसके सिवा तो कहीं सुहाता नहीं ऐसा हो जाता है। पूरे दिनमें यदि कुछ स्वाध्याय नहीं हुआ हो तो ऐसा होता है आज कुछ नहीं हुआ, अपने कुछ बाकी रह गया, ऐसा लगे। परन्तु फिर आगे कुछ चलता नहीं।

समाधानः- आगे नहीं बढे तब तक एक ध्येय आत्माका (रखना)। उसका अभ्यास करते रहना, न हो तबतक। अभ्यास हो तो अंतरमें उसे आगे बढनेका अवकाश है।

मुमुक्षुः- विकल्प मैं नहीं हूँ, ऐसे...?

समाधानः- विकल्प आये, लेकिन वह मेरा स्वभाव नहीं है। पहले उसका अभ्यास कर सकता है। बाकी सच्चा भेदज्ञान तो उसे सहज पहचानकर प्रतीत हो तो होता