३०२ है। पहले तो दृष्टिका बल उसे आता है। और अच्छी तरह स्वयंका ग्रहण, अवलम्बन करे ज्ञायकका। तो उसकी ज्ञाताकी धारा उग्र हो तो विकल्प टूटे।
मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन प्रगट होने पूर्व उपदेश देनेका प्रसंग आवे तो ज्ञानीकी भक्ति, ज्ञानीका उस प्रकारका उपदेश.. दूसरा कोई तत्त्वका उपदेश नहीं दे सकता, ऐसा कोई भाव है? ऐसा कहनेका क्या प्रयोजन है?
समाधानः- स्वयंको अभी प्रगट नहीं हुआ है इसलिये ज्ञानीकी भक्ति (प्ररूपित करनी)। ज्ञानीको हृदयमें (रखना)। ज्ञानीने जो मार्ग बताया, उस मार्ग पर चलना है। अर्थात तुझे कोई स्वच्छन्द होनेका अवकाश न रहे। ज्ञानीकी भक्तिका उपदेश देना, ऐसा कहा है।
मुमुक्षुः- दूसरे जीवोंको यदि उपदेश तो इस प्रकारका देना। तत्त्वकी बात करनेके बजाय, उसे ज्ञानीके प्रति भक्ति, ज्ञानीके प्रति आगे बढे, उस प्रकारका उपदेश मुख्यपने (करना)।
मुमुक्षुः- ज्ञानीको मुख्य रखकर फिर तत्त्वका..
समाधानः- तत्त्वका (उपदेश) नहीं देना ऐसा तो नहीं होता, तत्त्वका उपदेश तो देना, परन्तु उसमें ज्ञानीको मुख्य रखना, ऐसा उसका अर्थ है। तत्त्वका उपदेश.. तत्त्व मुख्य ग्रहण किये बिना आगे तो बढ नहीं सकता। दूसरोंको कहनेमें.. तत्त्व तो मुख्य है, परन्तु तत्त्वको समझानेवाले कौन है? कि ज्ञानी है। इसलिये ज्ञानीको आगे रखकर तू तत्त्वकी बात करना। ऐसा उसका अर्थ है। तत्त्व समझानेवाले कौन हैं? उनकी महिमा हृदयमें रखना। और वह तत्त्व जो समझाता है उसे आगे रखकर तत्त्वकी बात करना। आगे तो तत्त्वसे बढा जाता है, परन्तु उसे मार्ग दर्शानेवाले कौन हैं? उस ज्ञानीको तू मुख्य करके बात करना। ऐसे अर्थमें है।
मुुमुक्षुः- (ज्ञानीपुरुषका) आश्रित ही उपदेश देनेका अधिकारी है। समाधानः- कल्पनासे नहीं, परन्तु ज्ञानी क्या कहते हैं? उस मार्ग पर उपदेश देना, वे कहे उस अनुसार। तत्त्व तो बीचमें आता है।
मुमुक्षुः- मुख्य रखकर उसका अर्थ ऐसा है?
समाधानः- इस प्रकारका है, मुख्य रखकर। (मोक्षमार्ग) बतानेवाले कौन है, उन्हें लक्ष्यमें रखना। निमित्त-उपादानको साथमें रखना। अनादि कालका अनजाना मार्ग पहले स्वयं जाने तो ज्ञानीका उपदेश मिलता है तब उसे देशनालब्धि होती है। ऐसा निमित्त- उपादानका सम्बन्ध है। भगवान अथवा गुरु मिले तब देशनालब्धि हो, ऐसा निमित्त- उपादानका सम्बन्ध है। ज्ञानी द्वारा मार्ग समझमें आता है। इसलिये समझना अंतरमें उपादानसे है, परन्तु ज्ञानी साथमें होते हैं। इसलिये तू ज्ञानीकी बात साथमें रखकर,