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ु मुख्य रखकर समझाना, ऐसा उसका अर्थ है।उसका मतलब उसमें निमित्त कर देता है, ऐसा नहीं। होता है उपादानसे। परन्तु साथमें ज्ञानी तो होते हैं। अपनेसे होता है इसलिये ज्ञानीका कुछ नहीं, मेरेसे ही होता है, उस प्रकारके स्वच्छन्दमें चला न जाय। परन्तु ज्ञानी साथमें होते हैं, ज्ञानी क्या कहते हैं उसे तू लक्ष्यमें रखकर बात करना। उसे मुख्य रखकर।
मुमुक्षुः- इस बारके गुजराती आत्मधर्ममें भी आपकी बात जो आयी है, दो बात आपने (कही)। काम तो मुझे ही करना है, लेकिन साथमें आपके बिना तो नहीं चलेगा।
समाधानः- उस भावमें.. मैं स्वयं जाता हूँ, परन्तु देव-गुरु-शास्त्रके बिना मुझे नहीं चलेगा। आप साथमें आना। आपको साथमें ही रखता हूँ। साथमें रखे बिना मुझे नहीं चलेगा। मैं जाता तो हूँ स्वयंसे, लेकिन आपको तो साथमें ही रखना है। आपके साथके बिना मुझे चलेगा नहीं। ऐसा है।
देव-गुरु-शास्त्रके बिना मुझे चलेगा नहीं। देव-गुरु-शास्त्र बिनाका जीवन वह जीवन कुछ नहीं है। देव-गुरु-शास्त्र साथमें हो और पुरुषार्थ... ऐसी भावना है। और देव- गुरु-शास्त्र साथमेंं होते ही हैं। स्वयं आगे बढता है उसमें देव-गुरु-शास्त्र होतो हैं। अन्दर अपना कल्पवृक्ष वह अपनी भावना, देव-गुरु-शास्त्रका कल्पवृक्ष उगायेगा, वह आता है। आप सब पधारिये, मुझे देव-गुरु-शास्त्रके बिना नहीं चलेगा। भले ही मैं पुरुषार्थ मुझसे करुँ, तो भी आपके बिना मुझे नहीं चलेगा। आपका साथ तो चाहिये। ऐसा है।
मुमुक्षुः- अत्यन्त सुन्दर। निश्चय-व्यवहारकी सन्धिपूर्वक।
समाधानः- .. मुझे गुरु तो साथमें चाहिये। मैं तत्त्वमें आगे विचार करता हूँ, मुझे गुरु तो साथमें चाहिये, गुरुके बिना मुझे नहीं चलेगा। वह तो एक प्रकारकी भावना है। गुरु कर देते हैं, ऐसा अर्थ नहीं है, परन्तु गुरु मेरे साथ ही चाहिये। मुझे गुरुके बिना नहीं चलेगा। मैं भले ही पुरुषार्थ मेरेसे करुँ, परन्तु गुरु तो मुझे साथमें ही चाहिये।
... उसे मैं साथमें रखता हूँ। अकेला करता हूँ तो अकेला ही करुँ, ऐसा नहीं। मुझे साथमें ही चाहिये। मुझे आत्मा भी चाहिये और मुझे देव-गुरु-शास्त्र चाहिये, मुझे सब साथमें चाहिये। सब पधारो! ऐसा।
मुमुक्षुः- विचार करता है और अस्तित्व ग्रहण नहीं करता है, तो क्या बाकी रह जाता है? ग्रहण नहीं करता है मतलब कहीं रुकता है इसलिये अस्तित्व ग्रहण नहीं हो रहा है?
समाधानः- कहीं रुकता है, उसकी परिणति रुकती है। बाहरमें रुकती है। पुरुषार्थकी मन्दतासे कचास (रहती है)। उतनी अन्दर स्वयंकी रुचि, स्व-ओरकी रुचिकी मन्दता