Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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अभ्यास करे। जबतक समझमें न आये, जबतक प्रगट न हो, तबतक उसका अभ्यास करता ही रहे। मार्ग तो एक ही है-चैतन्यको पहिचानना, भेदज्ञान करना, उसकी-निर्विकल्प तत्त्वकी स्वानुभूति जबतक न हो, तबतक उसका अभ्यास करता ही रहे, उसमें थके नहीं। उसका विचार करे, उसका वांचन करे, बारंबार-बारंबार करता ही रहे, जबतक न हो तबतक।

मुमुक्षुः- इतने सारे पंथ और भिन्न-भिन्न संप्रदाय हैं, उसमें ऐसा है क्या कि अमुक ही लेना चाहिये? अमुकका ही वांचन करना चाहिये और दूसरेका नहीं करना चाहिये, ऐसा है उसमें?

समाधानः- सब संप्रदाय है, परन्तु मार्ग तो एक ही है। स्वानुभूतिका पंथ आत्माका जो प्रगट करनेका, आत्माका जो स्वभाव है, आत्माका सुख है उसे प्रगट करनेका पंथ तो एक ही है। ज्यादा पंथ हो, मतभेद होते हैं, उसमें सत्य क्या है वह स्वयंको नक्की करना पडता है। जिसे आत्माका करना है, जिसे जिज्ञासा जागी है, जिसे आत्माका सुख प्राप्त करना है, स्वयं ही नक्की करे कि किस मार्गसे आत्माका स्वरूप प्राप्त होता है? वह स्वयं ही नक्की करे। कौन-से गुरु और कौन-सा पंथ सत्य है, स्वयं ही नक्की करके उस मार्ग पर जाय। उसके लिये ज्यादा पंथ...

कोई कहाँ रुक गया होता है, कोई कहाँ रुक गया होता है। कोई पढनेमें, कोई रटनेमें, कोई त्याग करनेमें, कोई कहाँ-कोई कहाँ। परन्तु अंतरकी दृष्टि क्या? अंतरमें सत्य मार्ग क्या है, वह मार्ग तो एक ही होता है। स्वयंको ही उस ओर मुडना है, कोई कर नहीं देता। स्वतंत्र है, रखडनेमें स्वयं स्वतंत्र और प्रगट करनेमें भी स्वयं स्वतंत्र है। स्वयं ही नक्की कर ले। जिसे जिज्ञासा जागे वह सत्य ग्रहण अमुक प्रकारसे कर ही लेता है कि यह मार्ग सच्चा है। उसे प्रगट भले बादमें हो, परन्तु पहले नक्की करे कि सत्य तो यही है। ये गुरु कहते हैं और ये गुरु जो मार्ग बताते हैं, वह सच्चा है। ऐसा स्वयं नक्की कर सकता है।

मुमुक्षुः- स्वाध्याय करनेके बाद अथवा अमुक उसका भाव करनेके बाद उसका कोई नाप आता है कि कहाँ तक उसका ज्ञान हुआ है?

समाधानः- जबतक स्वयं यथार्थ समझता नहीं है, (तबतक) स्वाध्या करता है, उसका कोई नाप नहीं होता। अंतरमें प्रयोजनभूत ज्ञान होना चाहिये। आत्मा कौन है? उसका स्वभाव क्या है? उसमें गुण क्या है? उसकी पर्याय क्या? उसका विभाव क्या? ये पुदगल क्या? चैतन्य क्या? वह सब समझनेके लिये शास्त्रका अभ्यास होता है। अंतरसे यथार्थ समझन हो, समझनेके लिये है। उसका नाप नहीं होता कि इतना पढना चाहिये और इतना धोखना चाहिये। प्रयोजनभूत तत्त्वकी पहिचान होनी चाहिये।