३२४ वहँ चाहे जैसे भी, कडी महेनत करके करता है। यहाँ इसकी जरूरत लगे तो स्वयं ही उसमें पुरुषार्थ करे तो हो सके ऐसा है। उसे कोई रोकता नहीं है। स्वयं स्वतंत्र द्रव्य है। स्वतंत्र है। तू अपनेआप पुरुषार्थ करके कर तो होता है।
मुमुक्षुः- उनकी भावनासे ही हुआ।
समाधानः- उनकी भावनासे ही सब हुआ। योग हुआ, ये सब.. स्पष्ट कर दिया है। किस मार्ग पर जाना है, वह सबको बता दिया है, कहाँ जाना है वह। करनेका स्वयंको बाकी रहता है। ऐसी आत्माके प्रति रुचि और भक्ति आये तो वह हो। देव- गुरु-शास्त्रकी और अंतरमें आत्माकी।
मुमुक्षुः- वास्तविक रूपसे जो महिमा आनी चाहिये, वह नहीं आती। सुने, पढे, विचार करे तो ऐसा ही लगे कि यही करने जैसा है। फिर भी अंतरमेंसे जो लगन लगनी चाहिये, वह नहीं हो रही है।
समाधानः- उसे स्वयंको पुरुषार्थ करना है। स्वयंको करना चाहिये। उतनी अपूर्वता, उतनी महिमा, अंतरमेंसे स्वयं नक्की करके उसकी दृढता करके स्वयंको करना है। पुरुषार्थ स्वयंको करना है।
मुमुक्षुः- आपको गुरुदेवकी बात सुनकर कौन-सी बातसे एकदम पुरुषार्थ करनेकी प्रेरणा मिली? आपको गुरुदेवकी बातमें किसी बातकी अपूर्वता लगी?
समाधानः- गुरुदेव कहते थे न कि कुछ अलग ही करना है अंतरमें। प्रथमसे ही आत्माका कुछ करना है, ऐसा अंतरमें था ही। और गुरुदेवने मार्ग बताया कि अंतरमें मार्ग है।
मुमुक्षुः- आपको बचपनसे ऐसा होता था कि मुझे आत्माका करना है?
समाधानः- बचपनसे ही होता है। कुछ मालूम नहीं था, परन्तु कुछ करना है (ऐसा होता था)। त्याग कर देना, सब छोड देना ऐसा होता था। मार्ग क्या है, वह मालूम नहीं था। मार्ग तो गुरुदेवने बताया। गुरुदेव पहलेसे कहते थे, अंतरमें आत्मा है। मनसे अतीत, वचनसे अतीत, कायासे, सर्वसे अतीत अन्दर आत्मा विराजता है। अंतरमें आत्मा कोई अलग है, ऐसा पहलेसे उनके व्याख्यानमें थोडा-थोडा आता था। पहलेसे।
इस मनुष्य जीवनमें कुछ कर लेना है। बरसों निकल गये ऐसा होता था। १८ साल पूरे हो गये, २० वर्ष चले गये, आहा..! इतने साल बीतनमें कहाँ देर लगेगी? जल्दी कर लेना है, ऐसा होता था। उतने साल हो गये वह तो बहुत लगता था कि इतने साल बीत गये, इतने साल बीत गये। .. स्वयंको करना है।