Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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समझमें आये, परन्तु उसे अंतरसे रुचि, प्रीति उस बातकी आये। .. होनी चाहिये, तो वह भावि निर्वाण भाजन है। भले समझे कम, लेकिन उस बातकी रुचि और प्रीति लगनी चाहिये। ऐसे निर्विकल्प तत्त्वकी कि जिसमें किसी भी प्रकारकी क्रियाकी प्रवृत्ति नहीं है, जिसमें कोई विकल्पकी जाल नहीं है। ऊच्चसे ऊच्च शुभभाव भी आत्माका स्वरूप नहीं है। ऐसी बातकी अंतरसे प्रीति लगनी चाहिये। प्रीति अपनी होती है। फिर कर न सके, उसका भेदज्ञान न कर सके, पुरुषार्थ न चले, भावना हो परन्तु पुरुषार्थ चले नहीं, परन्तु उसकी रुचि और प्रीति कोई अपूर्व हो तो वह भावि निर्वाण भाजन है। उसके उपादानमें उतना तो होना चाहिये, अपनी रुचि उस ओरकी होनी चाहिये।

लौकिकका सब गौण होकर आत्मा-ओरकी रुचि उसे मुख्य होनी चाहिये। आत्माकी बात हो, जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र उसे मुख्य होने चाहिये। .. परिणाम स्वरूप आत्मा.. सब छूट जाय तो भी आत्मामें-से कुछ प्रगट होता है, आत्मा लबालब भरा है। वह कहीं शून्य नहीं है। उसमें तो अनन्त गुण और अनन्त पर्यायसे भरा हुआ आत्मा- शुद्धात्मा उसमेंसे प्रगट होता है। उस बातका विश्वास, वैसी रुचि अंतरमेंसे उसे आये।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- हाँ, वह आया है। स्वरूपकी परिणति और विभावकी निवृत्ति हो जाय। एक आत्मा पर दृष्टि करे तो हर जगह पहुँच जाता है। फिर कहीं भिन्न-भिन्न रूपसे पहुँचना नहीं पडेगा। भिन्न-भिन्न विचार, ज्ञान, दर्शन, चारित्र भिन्न-भिन्न साधना नहीं करनी पडेगी, एक दृष्टि आत्मा पर रख तो सर्व गुण, सर्व गुणांश सो सम्यग्दर्शन (होता है)। एक आत्मा पर दृष्टि करेगा तो तू हर जगह पहुँच जायगा। तेरे सर्व गुण और पर्याय प्रगट हो जायेंगे। परन्तु उस ओर दृष्टि स्थापित कर। निर्वृत्तस्वरूप आत्मा है, वह निर्विकल्प तत्त्व है।

मुमुक्षुः- ..एक आत्माको देखेगा तो..

समाधानः- हाँ, सब देख लेगा। एक आत्मा पर दृष्टि कर। मार्ग एक ही है। ज्ञानकी निर्मलताके सब आये, परन्तु एक मुख्य आत्माको ग्रहण किया तो उसमें सब आ जाता है। जो अन्दर पडा है, वह सब अन्दरसे अनन्त गुण और पर्यायें उछलेगी। हर जगह मैं चैतन्य, मैं चैतन्य। बाकी सब मुझसे भिन्न है, मैं एक चैतन्य हूँ। शरीर सो मैं नहीं, ये विभाव सो मैं नहीं, मैं एक चैतन्य हूँ। एक चैतन्य भगवान हूँ। जैसे महिमावंत भगवान हैं, वैसे मैं भी एक महिमावंत (तत्त्व हूँ)। गुरुदेव उसे आत्मभगवान कहते थे।

मुमुक्षुः- .. तो भी अमुक विचार करते हैं तब ऐसा लगता है कि इसमेंसे कब और कैसे पहुँचेंगे? इतना लम्बा-लम्बा लगता है, एकदम दुष्कर लगता है।