Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

३२८

समाधानः- अनादिका अभ्यास बाहरका हो रहा है। अंतर दृष्टि .. पडी है। रुचि और भावना करे तो हो। अंतरमें दृष्टि जाय। दृष्टि अनादिसे बाहर है। ये सब बाहरका दिखता है, अंतरमें दिखता नहीं। ये विभाव दिखे, यह दिखे, बाहरका दिखे। लेकिन अंतर स्वकी ओर देखता नहीं। अंतर सूक्ष्म उपयोग करे कि अन्दर जो जाननेवाला है वह मैं हूँ। यह सब कौन जानता है? जाननेवाला मैं हूँ। जाननहार पर दृष्टि कर।

जिसे जाना वह नहीं, परन्तु जाननेवाला मैं स्वयं जाननेवाला हूँ। वह जानना कहीं बाहरसे नहीं आता, अंतर स्वयं जाननेवाला एक ज्ञायकतत्त्व है। उस ज्ञायकतत्त्वको तू देख। उस ज्ञायकमें सूक्ष्म दृष्टि करके देख, वह ज्ञायकता उसमें सबमें ज्ञायकता ही भरी है। बाहरका अनादिका अभ्यास है न, इसलिये वह सब ऐसे ही अनादिके प्रवाह अनुसार चलता रहता है।

भूतकालका जो बीत गया, वह सब याद (आता है)। लेकिन वह याद करनेवाला कौन है? अन्दर एक जाननेवाला तत्त्व है। वह जाननेवाला है वह अनादिअनन्त शाश्वत है। वह जाननेवालेका एक गुण ऐसा मुख्य है कि जाननेवाला ज्ञात हो रहा है, लेकिन उसमें आनन्दादि अनन्त गुण हैं, वह बाहर उपयोग है इसलिये उसे अनुभवमें (नहीं आ रहा है)। उपयोग बाहर रुक गया है। अंतरमें देखे तो वह जाननेवाला ही है। उस जाननेवालेको पहचान ले। उस जाननेवालेकी ओर उपयोग कर, दृष्टि दे। तो यह सब भिन्न ही है।

मुमुक्षुः- नूतन वर्षके दिन प्रातः कालमें आप स्वप्नमें आये थे और आपने ऐसा कहा कि, ज्ञानदृष्टिसे सब देखो। इतना आनन्द हो गया, नूतन वर्षके दिन, माताजी!

समाधानः- ज्ञायकदृष्टिसे देखना, ज्ञायकको देख। बस, जाननेवाला ज्ञाता बन जा। ये सब बाहरका... तू जाननेवाला अन्दर है, उस जाननेवालेको देख ले। ज्ञानदृष्टि कर, ज्ञानमें दृष्टि कर, ज्ञायकको देख ले। हर जगह ज्ञायक ही है। उस ज्ञायकमें सब भरा है। ज्ञायक पूरा अनन्त गुणोंसे भरपूर है। उसमें शुद्धात्माकी अनन्त शुद्ध पर्याय (पडी हैं)। परन्तु वह अंतरमें दृष्टि करे तो वह पर्यायें प्रगट हो। परन्तु पहले तो उसे लक्षणसे पहिचान ले कि ये जाननेवाला सो मैं। उस जाननेवाले पर विश्वास कर कि ये जाननेवाला है वही मैं हूँ। ये दूसरा सब कुछ मैं नहीं हूँ। ये जाननेवाला ही मैं हूँ। वह द्रव्य, वह गुण और उसमें जो परिणति हो वह पर्याय, बस! वह जाननेवाला है वही मैं हूँ। उसका विश्वास कर, उसकी प्रतीत कर तो उसमें सब आ जायगा। जाननेवालेको देख। जाननेवालेको देखा नहीं है। बाहरका ज्यादा जाननेकी आवश्यकता नहीं है, एक ज्ञायकको देख। ... अपना है। स्वयं ज्ञायक ही है, उस ज्ञायकको पहचानना है। मूल मन्त्र यही है। फिर उसे अलग-अलग प्रकारसे विचारना है। मूल तो उसका स्वभाव