ट्रेक-
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ग्रहण कर लेना है। .. उसमें स्वानुभूति समायी है। उसमें ही सब समाया है। एक ज्ञायकको तू देख, उसके स्वभाव पर दृष्टि कर। उसमें भेदज्ञान आ जाता है। अपना अस्तित्व ग्रहण करे इसलिये अन्यसे भिन्न पड गया।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!