Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

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गुरुदेवने साष्टांग नमस्कार किये। गुरुदेवकी आँखमेंसे आँसू चले जाते थे, जब भगवान पधारे थे तब। भगवान पधारे तब कुछ अलग ही हो गया था। उस वक्त तो पहली बार भगवान पधारे। स्थानकवासीमें कहीं भगवानको देखे नहीं थे। भगवान पधारे इसलिये मानो साक्षात भगवान पधारे। गुरुदेवको ऐसी भावना हो गयी थी। भगवान मन्दिरमें पधारे तो ऐसे साष्टांग नमस्कार किये। आँखमेंसे आँसूकी (धारा बहने लगी)। जब भगवानकी प्रतिष्ठा हुयी उस वक्त भी गुरुदेवकी आँखमेंसे अश्रु चले जाते थे। मानो साक्षात भगवान पधारे हों!

बाहरसे भगवानका स्वागत और अंतरमें ज्ञायकदेवका भी मुझे आदर है। ज्ञायकदेवके लक्ष्यसे सब होता है। अंतरमें ज्ञायक... बाहरसे भगवानको कहते हैं, भगवान! पधारो। जिनेन्द्र देव पधारो! मैं आपको किस विधिसे पूजुँ? किस विधिसे वंदूँ? अंतरमें ज्ञायकदेवकी ओर जाय तो मैं आपको किस विधिसे पूजुँ? किस विधिसे वंदूँ? ऐसी उसे भावना होती है। उतना अंतरमें आदर है, उतना बाहरमें आदर है।

अल्प अस्थिरता है, वह मुझे नहीं चाहिये, मुझे उसका आदर नहीं है। जैसे ज्ञायकदेवका आदर... बाहर जिनेन्द्र भगवानका आदर और अंतरमें ज्ञायकदेवका आदर है। जिन प्रतिमा जिन सारखी, नमें बनारसीदास। अल्प भवस्थिति जाकी, सो ही प्रमाणे जिन प्रतिमा जिन सारखी। जिन प्रतिमा माने साक्षात भगवान हैं। भगवान और प्रतिमामें कोई फर्क नहीं है। जिन प्रतिमाको जिनेन्द्र समान जो देखते हैं, अल्प भवस्थिति। जिसकी भवस्थिति कम हो गयी है, जिसे मुक्ति समीप आ गयी है, अर्थात जिसे ज्ञायकदेव समीप आ गया है, जिसकी ज्ञायककी स्वानुभूति समीप अंतरसे हो गयी है। भगवानको साक्षात निरखता है। अंतरमेंसे उसे भावना होती है।

मुमुक्षुः- प्रभुदर्शनकी तो पूरी दृष्टि आपने अंतर्मुख कर दी।

समाधानः- अंतरमें देखे तो ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायक भगवान होता है। अंतरमें दृष्टि स्थापित की है। ज्ञायकदेव, बारंबार ज्ञायकदेव पधारो मेरे अंतरमें, मैं आपका आदर करता हूँ। बाहर आये तो मुझे जिनेन्द्र देव, गुरु और शास्त्रके सिवा कुछ नहीं चाहिये। जगतके अन्दर मुझे किसी भी वस्तुका आदर नहीं है। कोई वस्तुकी मुझे महिमा नहीं है, मुझे कोई नहीं चाहिये, बस! एक जिनेन्द्र भगवान मुझे मिले, गुरु मिले और शास्त्र मिले तो उसमें मुझे सब मिला है।

मैं स्वयं जाता हूँ, उसमें देव-गुरु-शास्त्रकी मेरी शुभभावना है, अभी न्यूनता है इसलिये मुझे देव-गुरु-शास्त्रके बिना नहीं चलेगा। मैं मेरी शुभभावनामें आपको साथमें रखता हूँ। आप दूर हों, तो भी आपको समीप आना ही पडेगा। मेरी भावना ऐसी प्रबल है कि आपको समीप आना ही पडेगा। मेरी भावनासे मैं आपको साथ ही