Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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रखता हूँ।

...भावना है, उसे बाहरके देव-गुरु-शास्त्रके कल्पवृक्ष उगे बिना रहेगा नहीं। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। जिसका उपादान तैयार हो, उसे ऐसे निमित्त होते ही हैं। जो निमित्तको अंतरसे यथार्थ ग्रहण करता है उसे उपादान तैयार हुए बिना नहीं रहता।

भगवानको पूरी तरह भले ही बादमें पहिचाने, देव-गुरु-शास्त्रको, परन्तु अमुक प्रकारसे वह पहचान लेता है। जो जिज्ञासु हो उसके हृदयनेत्र ऐसे हो जाते हैं कि ये सच्चे देव हैं, सच्चे गुरु हैं, सच्चे शास्त्र हैं। उसे अंतरमेंसे ऐसी पहचान हो जाती है। फिर अंतरमें स्वयंको पहिचाने तब यथार्थ विशेष पहचानता है।

... ज्ञायक जो भेदज्ञान करके प्रगट हो, वह निर्मल स्वरूप आत्मा है। ज्ञायकदेव प्रगट हुआ। उसके साथ देव-गुरु-शास्त्र शुभभावनामें होते हैं, वह जीवन ही जीवन है। दूसरा जीवन वह निःसार-सार रहित है। ऐसे अर्थमें वह सब कहा है।

.. प्रतिमाएँ जगतमें होती हैं। साक्षात जिनेन्द्र देव, उनकी प्रतिमाएँ भी शाश्वत होती हैं। कुदरत उसके साथ परिणमित हुई है। भगवानकी प्रतिमाएँ भी शाश्वत होती हैं। अपने तो यहाँ स्थापना की है। मनुष्य तो स्थापना करते हैं। देवोंको तो शाश्वत रत्नकी प्रतिमाएँ होती हैं।

मुमुक्षुः- गुरुदेव तो साक्षात महाविदेहसे पधारे, परन्तु भगवानको महाविदेहसे (ले आये)। ऐसे भगवान आये।

समाधानः- ... मेरे अंतरमें ज्ञायकदेव पधारो। मेरे महलमें पधारिये, मैं आपको विराजमान करता हूँ। आपका आदर करता हूँ, आपकी पूजा करता हूँ। किस विधि पूजुँ, किस विधि वँदूं? जहाँ भी देखुँ ज्ञायकदेव अनन्त गुणोंसे, अनन्त महिमासे भरा है। जैसे जिनेन्द्र देव प्रगट पर्याय प्रगट करके जिनेन्द्र देव जैसे महिमासे भरपूर है, वैसे ज्ञायकदेव भी उसकी शक्तिमें अनन्त गुणसे भरपूर है। मैं आपको महिमासे वंनद और पूजन कैसे करुँ? आप पधारो।

मुुमुक्षुः- अनादि कालसे वही प्रतिमाएँ हैं? समाधानः- बस, वही शाश्वत हैैं। ऐसे रत्नरूप परिणमित हुए प्रतिमाएँ हैं। उसमें परमाणु आये, जाय। परन्तु प्रतिमाएँ शाश्वत हैं।

मुमुक्षुः- वही प्रतिमा..

समाधानः- वही प्रतिमा अनादि कालसे हैं। जगतमें सर्वोत्कृष्ट जैसे तीर्थंकर भगवान हैं, वैसे प्रतिमाएँ भी शाश्वत रचित हैं। कुदरतकी ऐसी रचना है। जगतमें सर्वोत्कृष्ट भगवान हैं। कुदरता बता रही है कि प्रतिमा-परमाणु भी उस रूप परिणमित हो गये हैं। जैसे