अमृत वाणी (भाग-४)
३३६ मुझे आत्माका कुछ करना ही है, तो उसे लाभ हुए बिना रहता ही नहीं। उसे स्वयंको अंतरमेंसे ऐसी भावना जागृत होती है तो उसे लाभ (होता है)।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!
Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).
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३३६ मुझे आत्माका कुछ करना ही है, तो उसे लाभ हुए बिना रहता ही नहीं। उसे स्वयंको अंतरमेंसे ऐसी भावना जागृत होती है तो उसे लाभ (होता है)।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!