Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 185.

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ट्रेक-१८५ (audio) (View topics)

समाधानः- विचार और वांचन वहीका वही करे। बाकी जीवका अनादिसे पुरुषार्थ मन्द है इसलिये जो बाहरका निमित्त हो वैसी असर हो जाय। यहाँ माहोल अलग है इसलिये उसकी असर होती है, वहाँका माहोल अलग है, इसलिये उसकी असर होती है। अपनी तैयारी हो उस अनुसार रहे। वैसे संंयोगमें पुरुषार्थ रखना पडे, तो हो। इसीलिये शास्त्रमें आता है न कि तू सत्संग कर। गुरुका उपदेश सुन, अच्छे सत्संगमें रह तो तुझे आत्माको समझना आसान होगा। ऐसा सब आता है। क्योंकि ऐसी तैयारी नहीं होती। इसलिये तू ऐसे निमित्तोंमें रह। (गुरुदेव) मिले और यह सब योग मिलना कितना दुर्लभ होता है।

मुमुक्षुः- पूरे मण्डलकी रोनक बदल गयी।

समाधानः- भगवान पधारे वह दिन भी कुछ अलग था। और आज कितने वर्ष बीत गये तो भी ऐसी ही भावना (रहती है)। सब याद आये इसलिये ऐसी भावना जागृत हो। वह तो कुछ अलग ही था। मानों साक्षात भगवान पधारे हों। यहाँ भगवान साक्षात पधारे, महाभाग्यसे। नानालालभाई और सबको ऐसे भाव थे, भगवान विराजमान (करना), मन्दिर बने। गुरुदेवने ऐसा मार्ग प्रकाशित किया कि चैतन्यका धर्म आत्मा.. भेदज्ञान करके आत्मा-ज्ञायक आत्माको पहचान।

जिनेन्द्र भगवान, मन्दिर, गुरुदेवके करकमलसे कितना प्रभावना योग, कितने मन्दिर, कितने प्रतिमा स्थापित हुए। उन्होंने मार्ग प्रगट किया कि जगतके अन्दर मन्दिर शाश्वत और भगवानकी स्थापना भी होती है। गुरुदेवने मार्ग (प्रकाशित किया)। स्थानकवासीमें तो कोई समझता नहीं था कि भगवानके प्रतिमाजी होते हैं, मन्दिर होते हैं। वीतरागभावका पोषण होनेका कारण बनता है। साक्षात भगवानको देखनेसे, भगवानकी प्रतिमाजी देखने पर साक्षात भगवान याद आये और अपना आत्मा भी जैसे भगवान हैं, वैसा अपना आत्मा है।

अपना एक ध्येय, लक्ष्य, भावना होनेका कारण बनता है। जो भगवानको पहचानता है वह स्वयंको पहचानता है, ऐसा सम्बन्ध है। स्वयंको पहचाने वह भगवानको पहचानता है। स्वरूप बताया, मार्ग प्रगट किया।