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मुमुक्षुः- महाविदेह क्षेत्रसे सीमंधर भगवानको आप ही लाये हो।
समाधानः- ऐसा सब योग (बन गया)। गुरुदेवका और सब योग (बन गया)। पंचमकालके सभी जीवोंको लाभ मलिनेवाला होगा। ऐसे गुरुदेव पधारे इसलिये ऐसा मार्ग प्रगट किया।
मुमुक्षुः- आप सत्पुरुष यहाँ कहाँ? आपके प्रतापसे ही भगवान पधारे, नहीं तो कौन जानता कि ये सीमंधर भगवान.... गुरुदेवके करकमलोंसे प्रतिष्ठा हुयी, सब आपका और गुरुदेवका ही प्रताप है।
समाधानः- जगतमें भगवान सर्वोत्कृष्ट हैं। गुरुदेवने बताया, गुरुदेवने भगवानकी पहचान करवायी। चैतन्यका स्वरूप भी गुरुदेवने बताया। आत्मा स्फटिक जैसा है, निर्मल है। अन्दर जो लाल-पीला प्रतिबिंब उठता है वह उसका स्वभाव नहीं है। वैसे आत्मामें जो विभावका प्रतिबिंब उठता है, वह अपना स्वभाव नहीं है। उससे भिन्न आत्माको जान। ऐसा चैतन्यदेव विराजता है, उसे पहचान। वह दिव्यमूर्ति है। बाहरमें भगवान दिव्यमूर्ति है, देव है, जिनेन्द्र भगवान जगतमें सर्वोत्कृष्ट हैं। सर्वोत्कृष्टआत्माको पहचान। ऐसा गुरुदेवने बताया। गुरुदेवका परम उपकार है।
.. जिनेन्द्र भगवान, गुरु, शास्त्र सब मंगल हैं। अन्दर आत्मा मंगलस्वरूप है। उसकी मंगल पर्यायें कैसे प्रगट हों? वह भावना करने जैसी है। उसकी मंगलिकता (है)। जैसे भगवान मंगल हैं, वैसे आत्मा मंगल है। उसकी पर्यायें कैसे प्रगट हो, वह करने जैसा है।
चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारी लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपणत्तो धम्मो लोगुत्तमा।
चत्तारी शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, केवली पणत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि।
चार शरण, चार मंगल, चार उत्तम करे जे, भवसागरथी तरे ते सकळ कर्मनो आणे अंत। मोक्ष तणा सुख ले अनंत, भाव धरीने जे गुण गाये, ते जीव तरीने मुक्तिए जाय। संसारमांही शरण चार, अवर शरण नहीं कोई। जे नर-नारी आदरे तेने अक्षय अविचल पद होय। अंगूठे अमृत वरसे लब्धि तणा भण्डार। गुरु गौतमने समरीए तो सदाय मनवांछित फल दाता।
समाधानः- कैसा क्या? मार्ग तो एक ही होता है। करना स्वयंको है। मार्ग एक ही है। किसीके लिये दूसरा और किसीके लिये दूसरा, ऐसा नहीं है, एक ही मार्ग है-स्वभावको पहचानना और भेदज्ञान करना। एक ही मार्ग है। मार्ग तो एक ही है। परन्तु अन्दर लगन स्वयंकी हो तो होता है। लगन और पुरुषार्थ स्वयंका हो तो