Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

३५० पहुँच पाता हूँ, इसलिये मेरी गति धीरी है। मैं जहाँ खडा हूँ, वहीं खडा हूँ, आगे नहीं बढ रहा हूँ। भावनगर जाना हो तो धीरी गतिसे चले। और चले भी नहीं और खडा रहे तो पहुँचनेमें देर लगे। त्वरित गतिसे चलनेवाला एकदम पहुँच जाता है। नहीं पहुँचता है वह, ये सूचित करता है कि धीरी गति है। ऊपर-ऊपरसे है। अन्दरसे प्रगट हो तो पहुँच जाय।

मुमुक्षुः- अपना जोर तो ...

समाधानः- स्वयंको ही करना है, पुरुषार्थ तो स्वयंको ही करना है, कोई करवाता नहीं। रखडनेवाला भी स्वयं और मोक्ष करनेवाला स्वयं स्वतंत्र है।

चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारी लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपणत्तो धम्मो लोगुत्तमा।

चत्तारी शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, केवली पणत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि।

चार शरण, चार मंगल, चार उत्तम करे जे, भवसागरथी तरे ते सकळ कर्मनो आणे अंत। मोक्ष तणा सुख ले अनंत, भाव धरीने जे गुण गाये, ते जीव तरीने मुक्तिए जाय। संसारमांही शरण चार, अवर शरण नहीं कोई। जे नर-नारी आदरे तेने अक्षय अविचल पद होय। अंगूठे अमृत वरसे लब्धि तणा भण्डार। गुरु गौतमने समरीए तो सदाय मनवांछित फल दाता।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!