માતાજી નિમિત્ત-નૈમિત્તિક સંબંધ અસર કરે છે એક વચન સાંભળવાથી અસર કરે છે ને તે વાંચવાથી નથી કરતું? આપ જ કાંઈ કહી શકો તેમ છો. 0 Play माताजी निमित्त-नैमित्तिक संबंध असर करे छे एक वचन सांभळवाथी असर करे छे ने ते वांचवाथी नथी करतुं? आप ज कांई कही शको तेम छो. 0 Play
માતાજી! ઉપયોગ બહાર ન જાય તે માટે શું કરવું? 1:25 Play माताजी! उपयोग बहार न जाय ते माटे शुं करवुं? 1:25 Play
઼ઉપશમ-ક્ષયોપશમ સમ્યગ્દર્શન પુરુષાર્થકી કમીસે છૂટ જાય તો વહ અર્ધ પુદ્ગલ પરાવર્તન જ્યાદાસે જ્યાદા સંસારમેં રહતા હૈ યા અનંતકાલ તક... 3:55 Play ़उपशम-क्षयोपशम सम्यग्दर्शन पुरुषार्थकी कमीसे छूट जाय तो वह अर्ध पुद्गल परावर्तन ज्यादासे ज्यादा संसारमें रहता है या अनंतकाल तक... 3:55 Play
જો પરલક્ષ છોડકર સીધા આત્માકી અનુભૂતિ કરે ઉસીકા નામ ક્યા આત્માકા જ્ઞાન હૈ? 5:00 Play जो परलक्ष छोडकर सीधा आत्माकी अनुभूति करे उसीका नाम क्या आत्माका ज्ञान है? 5:00 Play
ધ્રુવ દૃષ્ટિકા વિષય બનતા હૈ યા પ્રમાણ(જ્ઞાન)કા? 8:10 Play ध्रुव दृष्टिका विषय बनता है या प्रमाण(ज्ञान)का? 8:10 Play
પર્યાય હોતી હૈ વહ દ્રવ્યસે હોતી હૈ યા પ્રત્યેક ગુણોંસે હોતી હૈ? 10:00 Play पर्याय होती है वह द्रव्यसे होती है या प्रत्येक गुणोंसे होती है? 10:00 Play
પર્યાય પર્યાયસે હોતી હૈ–ષટ્કારકસે હોતી હૈ વહ ક્યા ઉસકી સ્વતંત્રતા હૈ? કિસ દૃષ્ટિસે કહા ગયા હૈં? 11:00 Play पर्याय पर्यायसे होती है–षट्कारकसे होती है वह क्या उसकी स्वतंत्रता है? किस दृष्टिसे कहा गया हैं? 11:00 Play
સ્વયં હી આત્માકો જાનનેકા કાર્ય કરે–ઔર સમ્યગ્દર્શન પહેલે...તો શાંતિ આનંદ આયે ઉસકો હી વેદન કહતે હૈં? 13:00 Play स्वयं ही आत्माको जाननेका कार्य करे–और सम्यग्दर्शन पहेले...तो शांति आनंद आये उसको ही वेदन कहते हैं? 13:00 Play
‘અંદરથી મુંઝવણ થાય તો માર્ગ મળ્યા વિના રહે જ નહીં’ 19:00 Play ‘अंदरथी मुंझवण थाय तो मार्ग मळ्या विना रहे ज नहीं’ 19:00 Play
मुमुक्षुः- ... परन्तु माताजी! निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध अत्यन्त घनिष्ट है। एकवचनकी जो असर होती है, वह पढनेसे विचार नहीं आता।
समाधानः- परन्तु फिर भी स्वयं स्वतंत्र है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- स्वतंत्र है।
मुमुक्षुः- कितना, माताजी! ..
समाधानः- गुरुदेवने मार्ग बताया है। स्पष्ट करके गये हैं। करनेका स्वयंको है।
मुमुक्षुः- ... कल्याण करना है ऐसी गरज नहीं है।
समाधानः- अपनी उतनी तीखी गरज लगे तो हुए बिना रहे ही नहीं।
मुमुक्षुः- सबमें निज अस्तित्वका जोर लेना? माताजी!
समाधानः- सबमें निज अस्तित्वका जोर। मैं ज्ञायक, मैं चैतन्य, ज्ञायकका अस्तित्व- अपना अस्तित्व। तेरा अस्तित्व तू ग्रहण कर तो तू स्वयं जैसा है वैसा प्रगट होगा। तेरा अस्तित्व तू ग्रहण कर तो तेरा जैसा स्वभाव है, वह स्वभाव प्रगटरूपसे परिणमित हो जायगा। तेरा अस्तित्व तूने ग्रहण नहीं किया है इसलिये विभावपर्याय प्रगट होती है। तेरा अस्तित्व तू स्वयं ग्रहण कर तो उसमेंसे स्वभावपर्याय प्रगट होगी। सबमें अपना अस्तित्व ग्रहण करना है।
मुमुक्षुः- माताजी! उपयोग बाहर जाय तो क्या लेना? उपयोग तो शुभ-अशुभमेंजुडता है।
समाधानः- उपयोग बाहर जाय तो जिसकी सहज दशा है उसे तो अपनी परिणतिचालू रहती है। इसे तो उपयोग बाहर जाय तो अन्दर ऐसा भाव रहे कि करनेका कुछ अलग है और ये बाहर जा रहा है, एकत्वबुद्धि होती है। मैं तो भिन्न चैतन्य हूँ, ऐसी भावना रख सकता है। जिसकी सहज परिणति हो उसकी तो अलग बात है। उसे तो ज्ञायककी धारा निरंतर चालू रहती है। उपयोग बाहर जाय तो भेदज्ञान क्षण-क्षण, क्षण-क्षण उसे याद नहीं करना पडता। एकबार एकत्व हो जाय और फिर याद करना पडे कि मैं भिन्न हूँ, ऐसा उसे नहीं करना पडता। उसे तो जब भी उपयोग