Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

१२२ ऐसा होता है। उसके लिये सत्संग आदि हो तो होता है। तो यह संस्कार दृढ रहे। वहाँ मुंबईमें दूसरे क्षेत्रमें फर्क पडता है न। वहाँ मन्दिर आने-जानेका होता होगा? करते रहो, नक्की करो। बाहरमें सब खडा हो जाता है न, क्षेत्र बदले तो सब परिचय बदल जाता है। स्वयंकी उतनी दृढता होनी चाहिये। स्वयंको पुरुषार्थ करना चाहिये।

गुरुदेवने सब उपदेश दिया है। आप लोगोंने उपदेश बहुत बार सुना होगा। बचपनमें उपदेश सुना होगा, वह सब याद करना। गुरुदेव इस कालमें पधारे, महाभाग्यकी बात! ऐसे सत स्वरूपकी पहचान करवाने वाले पंचमकालमें कोई नहीं था, गुरुदेव पधारे तो सबको यह सत स्वरूप जानने मिला। मार्ग गुरुदेवने बताया।

मुमुक्षुः- ... अन्य किसीकी राह देखनी नहीं पडे, इस थोडा (स्पष्ट कीजिये)।

समाधानः- जरूरत नहीं पडे अर्थात द्रव्य-वस्तु उसे कहते हैं कि, वस्तु स्वयं स्वाधीन है। वस्तु स्वयं स्वतःसिद्ध है। उसे किसीने बनायी नहीं है। द्रव्य स्वरूप स्वयं द्रव्य ही है। उसके कार्यके लिये बाहरसे कुछ आये तो कार्य हो, ऐसा द्रव्य नहीं होता। द्रव्य स्वतंत्र होता है। उसका कार्य-उसकी परिणति अन्दर प्रगट हो, वह स्वतंत्र होती है। उसे कोई साधन आये या बाहरके कोई साधन मिले तो उसका कार्य हो, ऐसा नहीं होता। उसके कार्यकी तैयारी अन्दर हो तो साधन तो हाजिर ही होते हैं। उसीका नाम द्रव्य है कि उसके लिये कोई पराधीनता नहीं होती। वह स्वयं स्वाधीन हो, उसे ही द्रव्य कहते हैं। उसके कार्यके लिये किसीकी राह नहीं देखनी पडती। ऐसा उसका अर्थ है। अनन्त शक्तिवान है।

चक्रवर्ती राजा उसे कहें कि सब ऋद्धि उसके पास हो। उसकी ऋद्धिके लिये किसीका इंतजार नहीं करना पडे। चक्रवर्ती ऐसा होता है। वैसे यह चक्रवर्ती राजा, उसके कार्यके लिये अन्य किसीकी जरूरत नहीं पडती, अन्य साधनोंकी। स्वयं सर्व सामर्थ्यवान है। प्रत्येक द्रव्य। अब क्या करना? अब यह साधन नहीं है, तो कैसे आगे बढा जायेगा? स्वयं तैयार हो तो सब साधन होते ही है। अपनी तैयारी होनी चाहिये। स्वयं स्वतंत्र परिणामी द्रव्य है। उसीका नाम द्रव्य कहते हैं।

मुमुक्षुः- सचेत और अचेत, दोनोंमें ..

समाधानः- नहीं, नहीं, वह नहीं। स्वयं स्वयंके लिये स्वतंत्र है। दूसरेके लिये नहीं, दूसरेके लिये नहीं।

मुमुक्षुः- नहीं, अचेत जड द्रव्य है..

समाधानः- स्वतंत्र है। जड जडमें स्वतंत्र, चेतन चेतनमें स्वतंत्र। सब स्वतंत्र ही है। परमाणु स्वयं स्वतंत्र। सब स्वतंत्र हैं। धर्मास्ति, अधर्मास्ति सब द्रव्य स्वतंत्र हैं। उसके कार्यके लिये किसी भी द्रव्यकी किसीको जरूरत नहीं है। साधनोंको निमित्त-नैमित्तिक