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सम्बन्ध है। बाकी उसे किसीके लिये राह नहीं देखनी पडती। प्रत्येक द्रव्यमें प्रत्येक स्वतंत्र है। उसके द्रव्य-गुण-पर्याय स्वयं स्वतंत्र परिणमते हैं। उसका नाम ही द्रव्य है, नहीं तो द्रव्य कैसा? स्वतंत्र द्रव्य (है)। वैसा पराधीन द्रव्य जगतमें होता ही नहीं। गुरुदेव कहते थे न? भगवान आत्मा है। स्वतंत्र है। (द्रव्यमें) कुछ कम नहीं होता, सब पूरा ही होता है। वह तो पुण्य है, ये तो स्वतंत्र द्रव्य है।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! ऐसा है क्या, एक बार अनुभूति हो, फिर वह जब चाहे तब अनुभूति कर सके? चाबी हाथ लग गयी, जब चाहे तब अनुभूति करे।
समाधानः- हाँ, कर सके। स्वयं अन्दर विरक्त हो तब कर सके। बाहरसे उपयोग स्वरूपमें समेट लेना वह अपने हाथकी बात है। स्वयंके पुरुषार्थकी मन्दतासे बाहर अटका है। कोई उसे रोकता नहीं। उसकी भावना उग्र हो ... भावना उग्र हो कि स्वरूपमें ही लीन होना है, तो हो सकता है। मार्ग उसने जाना है। भावना उग्र हो कि स्वरूपमें लीन होना है, बाहरमें नहीं रुकना है, तो हो सकता है। उसे कोई रोकता नहीं। स्वयंके पुरुषार्थकी मन्दतासे अटकता है। लीनतामें आगे नहीं बढता तो अपने पुरुषार्थकी मन्दताके कारण।
सम्यग्दर्शन होनेके बाद तुरन्त कोई श्रेणी लगाता है। छठ्ठा-सातवाँ (गुणस्थान) मुनिदशा एकदम आती है, किसीको देर लगती है। स्वयंकी कमीके कारण है। फिर कहनेमें आता है कि कर्मका उदय है, वह सब कहनेको (कहते हैं), अन्दर स्वयंके पुरुषार्थकी मन्दताके कारण अटका है।
मुमुक्षुः- ... अन्दर भावनाकी उग्रता..
समाधानः- स्वयंकी भावनाकी उग्रता हो तो स्वयं अंतरमें लीन हो सकता है, कोई उसे रोक नहीं सकता।
मुमुक्षुः- ऐसा कोई नियम नहीं है कि एक महिनेमें एक ही बार निर्विकल्प हो, पंद्रह दिनमें हो, जैसी स्वयंकी भावना...
समाधानः- हाँ, स्वयंकी उग्रता अनुसार होता है। उसमें नियम नहीं है। परन्तु उसकी भूमिका योग्य होता है। छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें मुनिदशामें जो होता है, वह दशा उसे गृहस्थाश्रममें नहीं आ सकती। क्योंकि वह बाहरमें ज्यादा रुका है। मुनि उसप्रकारसे बाहरमें नहीं रुके हैं, उन्हें तुरन्त (निर्विकल्पता) होती है। गृहस्थाश्रममें उसका नियम मुनिदशा जितना (नहीं हो सकता), भावना हो तो भी मुनिदशा जितना नहीं हो सकता। उतना वह छूट नहीं सकता। परन्तु उसका नियम नहीं है। एक महिनेमें हो, पंद्रह दिनमें हो, उससे भी जल्दी हो। ऐसा कोई नियम नहीं है। किसीको पंद्रह दिन, महिनमें, किसीको उससे भी जल्दी होता है। ऐसा कोई नियम नहीं है। किसीकी उग्र धारा