अमृत वाणी (भाग-२)
१२४ हो तो उससे भी जल्दी होता है। लेकिन मुनिदशा जितना नहीं।
मुमुक्षुः- एक सप्ताहमें हो, चार दिनमें हो...
समाधानः- जैसी उसकी परिणतिकी उग्रता हो उस अनुसार हो सकता है।
मुमुक्षुः- यदि उग्रता अधिक हो तो ज्यादा देर तक तत्त्व चिंतवन चलता है, उग्रता नहीं हो तो...
समाधानः- हाँ, विकल्प सहित है, उसकी उग्रता अनुसार तत्त्व चिंतवन चलता है। नहीं तो उसका उपयोग पलट जाता है।
मुमुक्षुः- उसमें पुरुषार्थ ही कारण है। समाधानः- पुरुषार्थका कारण है। कर्म तो निमित्त है, वह तो अनादिका अभ्यास है इसलिये दौडा जाता है। परन्तु अपनी उग्रता यदि तत्त्व चिंतवनमें हो तो उस अनुसार रहता है। इसे तो डोर उसके हाथमें है। अपने कारणसे रुका है।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!
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