Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

३७०

.. प्रगट हो, स्वानुभूति करते हैं। .. चैतन्य पर करे तो ही पर्याय प्रगट हो। पर्याय प्रगट होती है, चैतन्य पर दृष्टि अखण्ड शाश्वत आत्मा है, उस पर दृष्टि करे, चैतन्यको पहचाने तो ही पर्याय प्रगट हो। परन्तु जैसा चैतन्यका स्वरूप है, वह चैतन्य प्रकाशमें कब आये? चैतन्य जैसा है वैसा ज्ञात हो, वेदनमें कब आये? कि उसे पर्याय प्रगट हो, वह पर्याय वेदनमें आये, तभी चैतन्य जैसा है वैसा ज्ञात होता है और वह स्वानुभूतिमें आता है। इसलिये पर्याय है वह आत्मा है, ऐसा अपेक्षासे (कहते हैं)। आत्मा जैसा है वैसा कार्य करे। उसके गुण जैसा स्वयं है वैसा कार्य करे, स्वयं जैसा है वैसा प्रगट हो, इसलिये वह पर्याय आत्मा है।

एवंभूत नयवाला ऐसा कहे कि जो केवलज्ञानस्वरूप आत्मा परिणमे तब ही केवलज्ञानी कहनेमें आये। प्रगटरूपसे परिणमे तब। एवंभूत नयकी दृष्टिसे ऐसा कहनेमें आये। और नैगमनयसे ऐसा कहे कि शक्तिरूपसे जो आत्मामें केवलज्ञान है, उसे केवलज्ञान कहनेमें आता है। ऐसी सब अपेक्षाएँ होती हैैं। तीर्थंकर होनेवाले हो तो तीर्थंकर हैं ऐसा कहनेमें आये। और जो एवंभूत दृष्टिसे (ऐसा कहे कि), तीर्थंकरकी पर्याय जब प्रगट हो, समवसरणमें विराजते हो तब तीर्थंकर कहनेमें आये। ऐसी सब अपेक्षा होती है।

आत्मा सच्चा कब कहलाये? कि आत्मा अपनी स्वानुभूति करे, उसके आनन्दकी स्वानुभूति करे तब वह पर्याय स्वरूप परिणमे तब पर्यायको आत्मा कहें। ऐसे उसकी अपेक्षा अलग होती है। अभी तो स्वानुभूतिका अंश है तो उसे.. एवंभूत दृष्टिवाला जैसा है वैसा कहे। केवलज्ञान स्वरूप परिणमे आत्मा, स्वानुभूतिरूप पूर्ण परिणमे तब वह निश्चय स्वरूपमें आया, तब वह केवलज्ञानी कहा जाय। ऐसे पर्यायकी अपेक्षासे...

आत्मामें अनन्त गुण हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र (आदि)। परन्तु ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप आत्मा परिणत हुआ, तब वह सच्चा ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप कहनेमें आये। .. ऐसा कार्य तो किया नहीं है। कार्य नहीं किया है तो वह आत्मा किस जातका? कार्यरूप परिणमे तब वह आत्मा है। ऐसे। आत्मा नहीं है ऐसा नहीं, द्रव्य स्वरूपसे आत्मा अनादिअनन्त है। उस कार्यरूप आत्मा, स्वानुभूतिरूप आत्मा परिणमा तब आत्मा कहे।

दृष्टान्त आता है, राजाका कुँवर हो तो उसे राजा-राजा (कहे)। परन्तु कार्य करता नहीं तो राजा कैसे कहे? कार्यरूप परिणमे, राजारूप परिणमे तब वह सच्चा राजा कहलाये। ऐसे शक्तिरूप आत्मा है, वह शक्तिरूप नहीं, परन्तु वह कार्यरूप परिणमे तब वह आत्मा है। ऐसे।

.. दृष्टि ही नहीं रखनी। द्रव्य पर दृष्टि करे तो ही कार्य प्रगट हो। तो पर्याय वह आत्मा, कहाँसे आया? .. आत्मा पर दृष्टि करनेसे ही आत्मा प्रगट हो। शाश्वत आत्मा पर दृष्टि करनेसे ही कार्य प्रगट होता है। परन्तु उस कार्यरूप आत्मा परिणमा