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पहचान ले। विकल्प तो उसके बादमें छूटते हैं। पहले उसे यथार्थ प्रतीत करता है, यथार्थ भेदज्ञान करके। फिर उसमें लीनता करे, भेदज्ञान करे, उग्रता करे तो उसके विकल्प छूट जाते हैं।
मुुमुक्षुः- अनुभव होने पूर्व प्रतीत हो जाती है? समाधानः- अनुभव पूर्व उसे प्रतीत होती है। वह उस गाथामें आता है, मति- श्रुत द्वारा निश्चय करता है। मतिज्ञान और श्रुतज्ञान द्वारा निश्चय करे कि यही ज्ञानस्वभाव है। ज्ञानस्वभावको नक्की करके फिर जो उपयोग बाहर जाता है, उसे अंतरमें लीन करके उपयोगको अंतरमें स्थिर करे तो विकल्प टूट जाते हैं। १४४ गाथा। बुद्धिसे नक्की करता है, परन्तु वास्तवमें तो अंतरमें ही करनेका है। अंतरमें गहराईमें जाकर स्वभावको ग्रहण करना है। पहले, यही ज्ञानस्वभाव हूँ, ऐसा नक्की करके, फिर पर प्रसिद्धिके कारण जो उपयोग बाहर जाता है उसे तू अंतरमें ला। अंतरमें उपयोगको स्थिर कर, मति- श्रुतज्ञानकी बुद्धिको अंतरमें स्थापित कर, तो तेरे विकल्प टूट जायेंगे। पहले यथार्थ प्रतीत करता है। अलौकिक मार्ग अंतरमें है। अलौकिक आत्मा, उसका मार्ग अलौकिक। और देव-गुरु-शास्त्र बताते हैं वह अलौकिक। उन्होंने जो प्रगट किया है, (वह अलौकिक है)।