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समाधानः- ... भगवानकी पर्याय, वह गुण कैसे हो? भगवान .. बेचैनी है, आकुलता है, अभी छूटा नहीं है, परन्तु उसे अंतरमेंसे ऐसा निर्णय हो कि मार्ग हाथमें आया, इसलिये बेचैनी कम हो जाती है। यही स्वभाव है, दूसरा नहीं है। ऐसे। यह स्वभाव है और यह मैं हूँ, ऐसे भावभासन हुआ इसलिये उसकी बेचैनी कम होती है।
मुमुक्षुः- ऐसा आता है न कि शरीर छूट जाय तो विकल्प छूट जाय। ऐसी जो तीखी भूमि है उसमें उसकी बेचैनी कम हो जाती है।
समाधानः- बेचैनी कम होती है। वह क्या कहा? शरीर छूट जाय, विकल्प..
मुमुक्षुः- द्रव्यदृष्टि प्रकाशमेंं आता है न कि शरीर छूट जाय या विकल्प टूट जाय, ऐसी स्थिति आ गयी है।
समाधानः- भावभासन हो तो बेचैनी कम हो जाती है।
मुमुक्षुः- आपके वचनामृतमें आता है, मार्गकी उलझन टल जाती है।
समाधानः- हाँ, मार्ग मिलने पर उलझन टल जाती है।
मुमुक्षुः- भावभासनकी कचास थी वह...
समाधानः- निर्णयमें डगमगा जाय तो भावभासनकी कचास है। भावभासन यथार्थ हो तो निर्णय दृढरूप रहे। ये जो भाव मुझे भासनमें आया वह यथार्थ है। तो निश्चय भी यथार्थ रहे। ज्ञान और श्रद्धाका ऐसा सम्बन्ध है। श्रद्धा यथार्थ हो उसके साथ ज्ञान यथार्थ हो। श्रद्धा यथार्थ हो उसके साथ ज्ञान यथार्थ होता है। ज्ञान यथार्थ हो तो श्रद्धा उसके साथ दृढ रहे।
.. जो लक्ष्यमें आया वह बराबर ही है। तो अंतरसे उसे शान्ति हो कि बराबर यही भाव है। ऐसा अन्दरसे निश्चय हो तो उसे भावभासन यथार्थ हुआ है। निश्चय न हो और भावभासन हो, तो भावभासनमें कचास है, निश्चय हो रहा है तो। अंतर ही कह दे कि यह बराबर है।
मुमुक्षुः- निश्चय नहीं है तो भावभासन नहीं है, ऐसा ही हुआ न?
समाधानः- हाँ, तो भावभासन नहीं है। अन्दर कचास है।