Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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PDF/HTML Page 1230 of 1906

 

ट्रेक-

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मुमुुक्षुः- शुद्ध भाव प्रगट करना। समाधानः- सच्चा ज्ञान करना, सच्ची श्रद्धा करनी, यथार्थ। ऐसी लगन लगे। सच्चा ज्ञान करना उसके लिये, तत्त्वका विचार करना। मैं भिन्न हूँ, ये स्वभाव मेरा नहीं है। ऐसी सच्ची श्रद्धा करना, सच्चा ज्ञान करना और शुद्धात्माको पहचानना। उसके लिये वह करना।

... स्वभानुभूति होती है। सम्यग्दर्शन होवे फिर मुनिदशा भी छठवे-सातवें गुणस्थानमें झुलते हुए क्षण-क्षणमें स्वानुभूति होती है। मुनिको भी स्वानुभूति बारंबार-बारंबार स्वानुभूति होती है। सच्चे मुनि भी तब होते हैं, जब स्वानुभूति यथार्थ बारंबार होती है तब होती है। उसमें ही केवलज्ञान होता है। विशेष-विशेष प्रगट होनेसे, स्वानुभूति होनेसे मुनिदशा, केवलज्ञान, सब उसमें होता है। सम्यग्दर्शन सब इसमें होता है। सम्यग्दर्शनसे लेकर मुनिदशा, केवलज्ञान सब स्वानुभूतिमें होता है।

मुमुक्षुः- ज्ञान तो हो गया, आत्मा अलग है..

समाधानः- सच्चा भेदज्ञान होता है, उसमें आगे क्या करना वह उसमें आ जाता है। भेदज्ञान हुआ, शरीर भिन्न आत्मा भिन्न। उसमें जो विकल्प होता है न? आकुलता- विकल्प उससे भी भेदज्ञान करना। शरीर तो स्थूल है। भीतरमें जो विकल्प होता है उसका भी भेदज्ञान होता है। विकल्प भी मैं नहीं है, विकल्प मेरा स्वभाव नहीं है। उससे भी भेदज्ञान होना, क्षण-क्षणमें जो विकल्प होते हैं, उससे भेदज्ञान होना। उसमें मैं ज्ञायक हूँ और ज्ञाताधाराकी उग्रता होती है। भेदज्ञान ऐसे बोलनेसे नहीं होता है। भेदज्ञान, विकल्पसे भी भेदज्ञान करना। विकल्पसे भेदज्ञान करके इसमें ज्ञायक जो है, मैं ज्ञायक हूँ, उसमें लीनता करना, स्थिरता करना, उसमें बारंबार-बारंबार बाहरसे उपयोग हटाकर आत्मामें लीन होना, बारंबर आत्मदर्शन होना, वह करनेका है। भेदज्ञान करनेसे (होता है)। जिसको आत्माका स्वरूप बारंबार-बारंबार आत्मदर्शन होता है। उसमें आ जाता है, भेदज्ञानमें सब आ जाता है। उपयोग आत्मामें लीन होता है।

मुमुक्षुः- ज्ञानलक्षण, अन्य द्रव्य अन्य द्रव्यके भाव और अवस्थामें हो रहे विकारी परिणाम, उससे पृथक हो, लक्षणका अस्तित्व वह उसके ज्ञानमें स्पष्ट ख्यालमें तो आना चाहिये न? ज्ञानमें भिन्नरूपसे पकडमें तो आना चाहिये न। और उस परसे ऐसा त्रिकाल ज्ञानमूर्ति परिपूर्ण मैं हूँ, ऐसे अन्दरमें अहंभाव करे तो, अभी तो बहुत बार ऐसा लगता है कि राग और ज्ञान मिश्ररूपसे ख्यालमें (आते हैं), स्पष्टरूपसे ये स्वच्छतामात्र सो ज्ञान, चैतन्य स्वच्छतामात्र सो ज्ञान और यह राग, वृत्तिका .. राग, वह भी बहुत स्पष्टरूपसे देखे तो उपयोगकी सूक्ष्मता न हो तो वह आभासमें ख्याल नहीं आता है। धारणासे तो बोल ले कि आत्माका जानपना है वह आत्माका ज्ञान है, वह आत्माका