Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 191.

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ट्रेक-
अमृत वाणी (भाग-५)
(प्रशममूर्ति पूज्य बहेनश्री चंपाबहेन की
आध्यात्मिक तत्त्वचर्चा)
ट्रेक-१९१ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- ज्ञानउपयोग भिन्न लक्ष्यमें आये, ख्यालमें आये तो फिर लक्ष्यको पकडनेमें देर न लगे। ऐसा त्रिकाल जो है वह मैं हूँ।

समाधानः- उपयोग भिन्न पडे और स्वयंको पकडमें आये वह सब साथमें ही होता है। परन्तु यथार्थ ग्रहण हो तो अपना अस्तित्व और उपयोग आदि सब उसे पकडमें आ जाता है। परन्तु यथार्थपने उसे सूक्ष्मतासे ग्रहण हो तो सब साथमें हो जाता है।

मुमुक्षुः- .. लक्षण और लक्ष्य साथमें..

समाधानः- साथ ही ग्रहण हो जाता है। इसलिये वह करनेका निश्चय करे तो कर सकता है।

मुमुक्षुः- भिन्नताके प्रयोगमें शरीरसे भिन्नताका प्रयोग तो कहीं नहीं आता है।

समाधानः- विभावसे भिन्न, उसमें शरीरकी भिन्नता साथमें आ जाती है। वह तो उसका क्रम लिया है कि पहले शरीरसे मैं भिन्न हूँ, वह तो.. शरीरको अपना माननेवाला एकदम स्थूल उपयोग है। इसलिये शरीरसे भिन्न मान। उसका क्रम प्रथम इससे भिन्नता कर, फिर इससे भिन्नता कर। शरीरको स्वयं एक मानता है, उसे ऐसा कहते हैं कि तू शरीरसे भिन्न है। शरीरसे भिन्न ग्रहण कर और फिर विकल्पसे भिन्न