Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

ग्रहण कर। विकल्पसे भिन्न करनेवालेको तो ऐसा कहते हैं कि तू शरीरसे भिन्न है वह तो पहले उसमें साथमें आ ही जाता है।

विकल्पसे भिन्नता करे उसमें शरीरसे भिन्नता तो पहले है। शरीर... इसलिये शरीरका तो पहले है। शरीरको अपना माने वह तो एकदम स्थूल है। शरीरसे भिन्न मैं ज्ञानस्वरूप हूँ। फिर विकल्पसे, विभावकी मलिनतासे भिन्न हूँ। सुबुद्धिको विलास.. उसमें जो शुभभाव आये, श्रुतज्ञान और विकल्प शुभभावसे मिश्रित हो उससे भिन्न तेरा स्वभाव है।

शुभभाव मिश्रित जो भाव हों, वह भी तेरा मूल अनादिअनन्त स्वभाव नहीं है। वह शुभभाव है। अधूरी ज्ञानकी पर्याय दिखे उतना ही तू नहीं है। तू तो शाश्वत है। विभावसे भिन्न किया इसलिये उसमें द्रव्यकर्मसे भिन्न वह तो साथमें आ ही गया। और ये शरीर तो स्थूल है। शरीरको एक माने उसे तो बहुत दूर जाना है। शरीरसे भिन्न हूँ, वह तो अभी स्थूल है। विकल्पसे भिन्नता करे वह सच्चा है। फिर उसमें शुभ और अशुभ दोनों भावसे।

मैं ज्ञान हूँ, दर्शन हूँ, चारित्र हूँ ऐसे विकल्पके भेद आये, गुणभेद आये, वह गुणभेद आये ऐसा भी तेरा अखण्ड स्वरूप नहीं है, भेदवाला (नहीं हैे)। तेरे गुण अन्दर कहीं खण्ड खण्ड टूकडेरूप नहीं है, तू तो अखण्ड है। उस भेदको गौण करके अखण्ड पर दृष्टि कर। अंतरमें दृष्टि करे, उस दृष्टिके बलसे भेदज्ञानकी उग्रता हो, ज्ञायककी उग्रता हो तो विकल्प टूटनेका प्रसंग आता है। .. उसे आसान पडता है, लेकिन विकल्पसे भिन्न पडना (कठिन लगता है)।

मुमुक्षुः- अंतरंग और बहिरंग ऐसे दो भेद अथवा सामान्य और विशेष, ऐसे कोई भेद हो सकते हैं कि इसे जाने, इसे जाने, इसे जाने अथवा तो यह मतिज्ञान, यह श्रुतज्ञान वह बहिरंग अंग है और जानपना.. जानपना... जानपना वह अंतरंग अंग है। ऐसे जानपने परसे यह जाननेवाला सो मैं, ऐसा कहीं कोई शास्त्रमें आता है?

समाधानः- मति-श्रुतज्ञानका लक्षण तो आता है। मति सामान्य प्रकारसे जानता है और विशेष भेद करता है वह श्रुतज्ञान। उसके उपयोगमें वह फर्क पडता है। सामान्य चेतना दर्शनउपयोग है वह अलग है। वह तो एक अभेद ग्रहण करता है, भेद नहीं पडता है। इस मतिमें भेद पडता है परन्तु सामान्य प्रकारसे मति ग्रहण करता है। और विशेषमें भेद करके सूक्ष्म-सूक्ष्म जानता है वह श्रुतका उपयोग है। मति और श्रुतमें वह फर्क पडता है।

वह अंतरमें जाये तो सामान्यपने जो ग्रहण करे वह मति और विशेष भेद करता है कि मैं यह ज्ञान हूँ, ऐसे सामान्य प्रकारसे मति ग्रहण करे और विशेष प्रकारसे ग्रहण करे कि यह ज्ञान है वही मैं हूँ। यह ज्ञान है, दर्शन है, चारित्र है, ऐसे भेद