Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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PDF/HTML Page 1238 of 1906

 

ट्रेक-

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ऐसे भाव, ऐसा ज्ञान उसे बीचमें आ जाता है। दृष्टि तो एक अखण्ड पर है। फिर भी ज्ञानमें साधनामें ये सब उसे आ जाता है। परके जो साधन हैं, वह साधन मेरा मूल साधन नहीं है। मेरा साधन मुझे है, मेरा आश्रय मुझे है, मेरा कर्म-कार्य मुझमेंसे प्रगट होता है। मेरा आधार मुझे है। मुझे दूसरेका आधार नहीं है। ऐसा बीचमें आ जाता है। मैं मेरे द्वारा ही, मेरे ही लिये, मुझमेंसे मैं प्रगट होता हूँ। मेरी शुद्धि मुझमेंसे प्रगट होती है। परमेंसे नहीं आती है।

अनादिका भूला है, मानों परमें से सब आता है, परके आश्रय बिना मुझे चलता नहीं, परके आधारसे मैं टिकता हूँ, ऐसा भ्रम हो गया है। उसका पलटा होता है तब दृष्टिके साथ ज्ञान भी ऐसा कार्य करता है। मुझे परका आधार नहीं है, मुझे मेरा ही आधार है। मुझे मेरा ही साधन है। मैं मेरे लिये, मुझमेंसे प्रगट होता है। ज्ञान ऐसा कार्य किये बिना नहीं रहता। उसकी परिणति भी उस प्रकारसे काम करती है। बीचमें साधकदशा है। साध्य एकदम पूर्ण हो और कुछ करना ही न हो तो बीचमें कुछ नहीं आता। उसमें दृष्टि अपेक्षासे जैसी है वैसी अनादिअनन्त वस्तु है। परन्तु उसमें साधनाकी शुद्ध पर्याय प्रगट करनी है। सम्यग्दर्शनकी पर्याय प्रगट हो, उसमें चारित्रकी निर्मलता, स्वरूपाचरण चारित्र, ज्ञानकी निर्मलता आदि सब प्रगट होता है। इसलिये बीचमें ऐसे भाव आये बिना नहीं रहते। ज्ञान ऐसा कार्य किये बिना नहीं रहता।

परका कारकोंसे भिन्न पडकर अपने कारकोंको ग्रहण किया। मैं मुझे मेरे लिये, मेरे कार्यके लिये मुझे जानता हूँ। ज्ञान स्वपरप्रकाशक है, ख्यालमें है। परन्तु निश्चय ओरकी दृष्टिको प्रगट करता हुआ... यथार्थ ज्ञान तो उसे निश्चय और व्यवहार दोनों साथमें ही रहे हैं। निश्चयको मुख्य रखकर व्यवहार साथमें रहता है। ज्ञान यथार्थ हो और दृष्टि सम्यक हो उसके साथ ज्ञान ऐसा सम्यक साथमें होता है। निश्चय और व्यवहारका विवेक करता हुआ ज्ञान साथमें ही होता है।

मुमुक्षुः- और निर्विकल्प अनुभव होता है।

समाधानः- .. छूट जाता है। मैं परको नहीं जानता हूँ, मुझे मेरे लिये जानता हूँ, वह सब विकल्प है। बाकी उसे ऐसा ज्ञान वर्तता है कि मैं स्वयं अनादिअनन्त स्वभाव पर दृष्टि करके मैं मुझे जानता हूँ, परके साथ एकत्वबुद्धि नहीं होती है, परसे भिन्न ज्ञानमें रहकर स्वयं मैं अपने आत्माको जानता हूँ, उसमें पर बीचमें आ जाता है। ऐसा ज्ञान उसे सहज वर्तता है। उसमें उसे विकल्प नहीं करना पडता। परन्तु ये तो सब ज्ञानका विस्तार करते हैं न, उसमें सब आता है। ऐसे विकल्प बीचमें करना पडता है ऐसा नहीं होता, ऐसा ज्ञान उसे होता है। मैं मेरेसे स्वतंत्र हूँ। परका आधार नहीं है। स्वयं स्वपरप्रकाशक मेरा स्वभाव है। मैं अनादिअनन्त स्वयं वस्तु हूँ। वह सब