८ ऐसा उसे निश्चय होता है। उसे आकुलता तो लगती है। ये सब मेरा स्वभाव नहीं है। सबमें आकुलता है तो आकुलता ही लगती है।
मुमुक्षुः- युक्तिसे आकुलताका वेदन लगे या वास्तवमें मन्द कषायमें भी आकुलताका (वेदन होता है)?
समाधानः- नहीं, युक्तिसे ग्रहण करे लेकिन उसे वेदनमें भी ऐसा लगे कि यह आकुलता है। उसमेंसे छूट नहीं सकता है, परन्तु उसे वेदनमें लगे कि ये आकुलता है।
मुमुक्षुः- मन्दमें मन्द कषाय हो तो भी उसे उस प्रकारका वेदन होता है?
समाधानः- हाँ, वह आकुलता है। .. किया कि यह आकुलता है और यह स्वभाव है। ऐसा निश्चय किया उतना ही नहीं, अपितु उसे अन्दर वेदनमें भी लगता है कि यह आकुलता है।
मुमुक्षुः- खटकका भी वही प्रकार, आकुलताका वेदन होता है इसलिये खटक रहा करे।
समाधानः- खटक रहा करे कि यह आकुलता है। लेकिन वह बीचमें आये बिना नहीं रहता। अभी शुद्धात्माका स्वरूप प्रगट नहीं हुआ है, वहाँ बीचमें आता है। अभी पूर्णता नहीं है, भले भेदज्ञानकी परिणति चालू हो तो भी बीचमें शुभभाव आते हैं। परन्तु वह समझता है कि आकुलता है। आकुलता आकुलतारूप वेदनमें आती है, स्वभाव स्वभावरूप वेदनमें आता है।
मुमुक्षुः- प्रश्न तो इतना होता है कि साधकको तो वैसा होना बराबर है, क्योंकि उन्होंने तो अतीन्द्रिय आनन्दका स्वाद चखा है, इसलिये आकुलता प्रत्यक्ष लगे। परन्तु उसके पहले भी मिथ्यादृष्टिकी भूमिकामें भी मन्द कषायमें भी वेदनमें आकुलता लगती है।
समाधानः- उसे लगे। खटककी तीव्रता हो जाय तो उसे लगे कि यह आकुलता है। नक्की करता है। वह प्रगट नहीं हुआ है तो वह अंतरमें अमुक प्रकारका वेदन पहचानकर नक्की करे तो अपनेसे नक्की किया ऐसा कह सकते हैं। ये अभी वेदनमें आता है, ये सब प्रवृत्तिरूप भाव आकुलतारूप है। ये ज्ञान है वह शान्तिरूप है। अमुक प्रकारसे वह युक्तिमें लेता है, अपने वेदन परसे नक्की करे तो उसने कुछ यथार्थ नक्की किया कहनेमें आये। ऊपर-ऊपरसे नक्की करे वह यथार्थरूपसे नक्की नहीं हुआ है।
स्वयं अपना स्वभावको पहचानकर, अपना वेदन अंतरसे पहचानकर नक्की करे तो उसने कुछ यथार्थ नक्की किया है। इसलिये उसे वेदनमें आता है कि यह आकुलता है, यह स्वभाव ज्ञान है वह शान्तिरूप है। लेकिन वह उससे छूट नहीं सकता है, भेदज्ञान नहीं होता है, परन्तु वह अमुक प्रकारसे निश्चय तो कर सकता है। उसके