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स्वयंके वेदनमें भी ज्ञात हो सके ऐसा है कि ये आकुलता है, ये शान्ति है, ज्ञान है। ज्ञायकता है वह शान्ति है। ऐसे।
मुमुक्षुः- ज्ञानी धर्मात्माको-भगवानको कैसा सुख होगा, वह भी नक्की हो सकता है? वेदनसे, अनुमानसे।
समाधानः- वेदनसे नक्की नहीं (कर सकता), परन्तु वह अनुमानसे नक्की कर सकता है। सुख कैसा हो? उस सुखका वेदन स्वयंको नहीं है।
मुमुक्षुः- स्वयंको दुःखका वेदन है, इससे विरूद्ध..
समाधानः- इससे विरूद्ध सुख (है), वह अनुमानसे नक्की कर सके। आकुलतासे विरूद्ध निराकुलता, उतना वह नक्की करे। परन्तु वह आनन्द गुणको नक्की करना वह अनुमानसे नक्की कर सके। आनन्दगुण उसे कहीं वेदनमें नहीं आता है। अनुमानसे अमुक प्रमाण परसे वह नक्की कर सकता है। युक्तिसे, स्वभावसे अमुक नक्की कर सकता है। उसके वेदनमें नहीं आता है।
मुमुक्षुः- आकुलताका तो वेदन होता है, इसलिये ज्ञानकी सूक्ष्मता होने पर उसे पकडमें आता है।
समाधानः- उसे पकडमें आता है। सुख पकडमें आये कि निराकुलता वह सुख, आकुलता वह दुःख। परन्तु आनन्दगुण है वह उसे अनुमानसे, अमुक प्रमाण परसे नक्की करे। जीव आनन्दको इच्छता है, इसलिये आत्मामें ऐसा कोई आनन्दगुण है कि जिसकी वह इच्छा करता है वह मिलता नहीं है। आत्मामें ऐसा आनन्दगुणका स्वभाव है।
मुमुक्षुः- माताजी! अन्दर जो शुभाशुभ भाव होते हैं, वह तो ..
समाधानः- भाव जो होते हैं उसे समझकर, वह भाव है वह आकुलताका वेदन है। अन्दर जाननेवाला है वह भिन्न है। शुभाशुभ भावोंको जाननेवाला भिन्न है और शुभाशुभ भाव भिन्न है। वेदन होता है वह तो आकुलतारूप है। उससे भिन्न मैं चैतन्य हूँ, उसे जाननेवाला भिन्न है।
मुमुक्षुः- ख्यालमें आता है न कि ये भाव हुआ, यह भाव हुआ। जो भाव होते हैं वह पकडमें आते हैं कि ऐसे भाव हुए। जिसे मालूम पडता है वह मैं हूँ, ऐसे?
समाधानः- हाँ, वह जो मालूम पडता है वह मैं हूँ। परन्तु वह मालूम पडता है वह उसकी पर्याय है, मूल तत्त्वको ग्रहण करनेका है। जो मालूम पडता है वह बराबर, मालूम पडता है वह ज्ञानकी पर्याय है। जो ये शुभाशुभ भाव होते हैं कि यह भाव आया, यह भाव आया, यह भाव आया। वह सब ज्ञानकी पर्याय है। परन्तु उसमें मूल वस्तु जो अनादिअनन्त है वह ज्ञायक परिपूर्ण है। एक-एक वस्तुको जाने,