है, वैसे जगतमें जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र सब शाश्वत हैं। ये वाणी टंकोत्कीर्ण अक्षरमें उत्कीर्ण हो, इसलिये उसका अधिक शाश्वतपना होता है।
आत्माको और वाणीको ऐसा सम्बन्ध है-निमित्त-उपादान। ज्ञायक ज्ञायक स्वभावरूप परिणमता है, परन्तु उसमें निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। अनादि कालसे जीव न समझे, परन्तु वह समझे तब उसे देशनालब्धि होती है। उपादान-निमित्तका ऐसा सम्बन्ध है। निमित्त निमित्तरूप है, उपादान उपादानरूप है। फिर भी निमित्त और उपादानका सम्बन्ध हुए बिना नहीं रहता।
निमित्तमें प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र होने पर भी उसकी उपस्थिति तो होती ही है। निमित्त- उपादानका ऐसा सम्बन्ध है। स्वतंत्र (हैं), इसलिये उसकी उपस्थिति न हो ऐसा नहीं बनता। निमित्त-उपादानका सम्बन्ध ऐसा है। अनादि कालसे ऐसा वाणी और आत्माका सम्बन्ध है। सर्व प्रथम देशनालब्धि होती है तब उसे ऐसा सम्बन्ध हुए बिना रहता ही नहीं। निमित्त-उपादान।
ज्ञायकदेव अन्दरसे भेदज्ञान करके जब स्वयं अपने चैतन्यघरमें बसता है, तब वाणीका निमित्त बनता है। ज्ञायक ज्ञायकको ज्ञान द्वारा पहचाने, प्रज्ञाछैनी द्वारा। परन्तु उसमें वाणी- देव-गुरुकी वाणी और शास्त्र निमित्त साथमें होता है। ऐसा सम्बन्ध है। अनादि ऐसा वस्तुस्थितिका सम्बन्ध है। वाणीका निमित्त, उपादानके साथमें होता है। सर्व प्रथम ऐसा सम्बन्ध होता ही है। देशनालब्धिका। सर्व कारण इकट्ठे हों, उसमें देशनालब्धिका एक कारण बनता है।
... सब विकल्पको छोडता जाता हूँ। विकल्प उसकी भूमिका अनुसार सब छूटते जाते हैं, गृहस्थाश्रमके विकल्प। पाँचवी भूमिकामें अमुक प्रकारके विकल्प, चतुर्थ भूमिकामें आये तो अनन्तानुबन्धी जाय, इसलिये सम्यग्दर्शन हो, स्वानुभूति हो तो अनन्तानुबन्धी सम्बन्धी जो-जो परिणाम थे वह छूट गये। फिर उसे चतुर्थ भूमिकामें तारतम्यता अनुसार उसकी भूमिका अनुसार, पाँचवी भूमिकामें अमुक जातके उसके विकल्प छूट गये। छठवें- सातवें गुणस्थानमें उसे एकदम... छठवें-सातवें गुणस्थानमें झुलता है। फिर भी उसे देव- गुरु-शास्त्रके विकल्प तो उसके साथ ही साथ रहते हैं। उसके गृहस्थाम सम्बन्धीके दूसरे विकल्प छूटते जाते हैं।
चौथे गुणस्थानमें हो तो भी अमुक प्रकारके (होते हैं)। विकल्पको छोडता जाता हूँ और मेरी स्वानुभूतिमें जाता हूँ। विकल्पका साथ मुझे नहीं चाहिये। वह छूटता जाता है। परन्तु देव-गुरु-शास्त्रके विकल्प तो वहाँ रहते हैं। चतुर्थ गुणस्थानमें रहते हैं, पाँचवेमें रहते हैं और छठवें-सातवें गुणस्थानमें भी वह विकल्प तो रहता है। उसके कायामें फर्क पडता है। चौथे गुणस्थानमें देव-गुरु-शास्त्र और बाहर जो .. अमुक जातके होते