Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

२२ हैं, उसके कायामें फर्क पडता है। परन्तु विकल्पमें फर्क नहीं पडता, विकल्प तो ऐसे ही साथमें रहते हैं।

मुनिके अमुक कार्य होते हैं। दर्शन और अमुक जातके शास्त्रकी रचनाक करते हैं। मन्दिर और ऐसा सब मुनिओंको होता है। दर्शन करे। गृहस्थाश्रमके कार्य अमुक प्रकारके होते हैं, प्रभावनाके। परन्तु देव-गुरु-शास्त्रके विकल्प तो मुनिराजको भी साथ- साथ होते हैं। अबुद्धिपूर्वकमें उसके अमुक विकल्प अबुद्धिपूर्वकके रह जाय तो शुक्लध्यानकी श्रेणी चढते हैं तो भी आखिर तक श्रुतका विकल्प उन्हें साथें ही होता है।

जब अंतरमें एकदम शाश्वत जम गये, स्वयं ज्ञान ज्ञानरूप परिणमित हो गया, तब उसे श्रुतका रागमिश्रित विचार था अबुद्धिपूर्वकका वह छूट गया। वह विकल्प आखिर तक साथमें रहता है। बाकी सब विकल्प छूटते जाते हैं। उसकी भूमिका अनुसार सब छूटते जाता है। परन्तु यह विकल्प तो (होता है), इसलिये उसका साथ तो आखिर तक रहता है। आखिरमें शुक्लध्यानकी श्रेणि चढे तो श्रुतका विकल्प भी उसे अबुद्धिपूर्वकका होता है। फिर जब एकदम जम जाय, केवलज्ञान हो तब उसके विकल्प छूटते हैं। इसलिये वह तो आखिर तक होता ही है। नहीं चले उसमें वह आ ही जाते हैं। विकल्प, आपके बिना सब चलेगा, मैं आपको निकालना चाहता हूँ। ज्ञायक तो मेरे साथ ही है। ज्ञायककी स्वानुभूतिमें मैं विशेष बढता जाता हूँ। परन्तु बाहर आता हूँ वहाँ देव-गुरु-शास्त्रके विकल्प ऐसे ही होते हैं।

उसके कायामें फर्क होता है, चौथे-पाँचवें गुणस्थानें। छठवें-सातवें गुणस्थानमें कार्य अमुक जातके होते हैं। परन्तु विकल्प तो उसके साथ ही होते हैं। उसकी भूमिका अनुसार। छठवें-सातवें गुणस्थानमें संज्वलनके विकल्प हो जाय तो भी यह विकल्प तो उसके साथ ही होते हैं।

आचार्य कैसे शास्त्र रचते हैं। जिनेन्द्र देवकी भक्तिके कैसे शास्त्र रचते हैं। अमुक जातके शुभभाव तो बाहर आते हैं तब आते ही हैं। श्रुतका चिंतवन करे तो शास्त्रोंकी रचना करते हैैं। केवलज्ञान हो तब उसे अबुद्धिपूर्वकका विकल्प हो (वह छूट जाते हैं)। नहीं तो साथमें ही होते हैं। मुझे आपके बिना नहीं चलेगा, उसका अर्थ यह है कि वह तो उसका साथ लेकर जाता है। स्वतंत्र अपने पुरुषार्थसे होता है, परन्तु बाहर आये वहाँ यह होता है। बाहर आकर कहाँ खडे रहते हैं? देव-गुरु-शास्त्रके परिणामोंमें खडे रहते हैं। देव-गुरु-शास्त्र और शुभके अमुक जातके उनके व्रतके विकल्पमें खडे रहते हैं। देव-गुरु-शास्त्र और उसके आचरणके व्रतके विकल्पमें खडे हैं। दूसरे विकल्प छूटते जाते हैं। दूसरे सब विकल्प छूटते जाते हैं। सब क्रमशः घटते जाते हैं। संज्वलनका रह जाता है।