Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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अन्दर तो दृष्टि स्थिर हुयी है। शुद्धात्माकी साधना करनेवाले, शुद्धात्मा जिसने प्रगट किया,.. मूर्तिमंत दिखता है उस पर उसकी दृष्टि जाती है। भगवान दिखे, भगवानकी प्रतिमा दिखे, गुरु, गुरुकी वाणी मूर्तमान रूपमें दिखता है और अन्दर स्वानुभूतिमें और ज्ञायकमें उतनी स्थिरता नहीं होती है तो बाहर शुभ विकल्पमें वहाँ जाता है। शास्त्र आदिमें। .. दर्शनमें दिखता है। दृष्टि स्थिर हो गयी है, उपयोगमें भी (अंतर्मुख हो गया है)।

.. ज्ञायककी भेदज्ञानकी धारा खडी है। उपयोग वहाँ बाहर जाता है। ... शुद्धात्माको खोजता है। अंतरमें तो शुद्धात्मा उसके पास है। परन्तु उसे प्रेम है इसलिये वह बाहर भी वही खोजता है। .. उसे हेय मानता है। परन्तु शुद्धात्माका जो प्रेम अन्दर परिणति वहाँ लगी है न, इसलिये बाहर जाता है तो उसे खोजता है। बीचमें शुभ आ जाता है। वह तो आये बिना रहता ही नहीं। इसलिये वह तो बीचमें आ जाता है। उसे शुभरागको रखनेकी इच्छा नहीं है। परन्तु उसके साथ आ जाता है। बाहर आये तब, उसे शुद्धात्माका प्रेम है इसलिये शुद्धात्मा खोजता रहता है। इच्छा नहीं है, लेकिन वह बीचमें आता है।

मुमुक्षुः- महा मंगलकारी जन्म जयंति है। शासनके सब भक्त सम्यकत्वकी महिमा .. कर रहे हैं, ऐसे प्रसंगमें सम्यकत्वका ... कृपा कीजिये। और वह कैसे प्राप्त हो, वह समझानेकी कृपा कीजिये।

समाधानः- वह तो गुरुदेवने बहुत प्रकारसे बताया है। गुरुदेवका परम उपकार है। गुरुदेवने यह मार्ग बताया। सब लोग कहाँ पडे थे। गुरुदेवका परम उपकार है।

सम्यकत्व अर्थात क्या? कोई जानता नहीं था। बाहरमें कुछ श्रद्धा की इसलिये सम्यग्दर्शन (है), ऐसा मानते थे। उसमें गुरुदेवने स्वानुभूतिका मार्ग (प्रगट किया)। स्वानुभूति हो वही सम्यग्दर्शन है। गुरुदेवने यह मार्ग बताया है। और वह सम्यग्दर्शन अंतर चैतन्यमें भेदज्ञान करके मैं ज्ञायक हूँ, उसके अलावा बाकी सब है वह मैं नहीं हूँ, अपितु मैं एक ज्ञायक हूँ। ऐसी उसकी प्रतीत और श्रद्धा यथार्थ करे, उसके विकल्प टूटकर अनन्दर लीन हो तो स्वानुभूति हो, वही सम्यग्दर्शन है। बाकी सम्यग्दर्शन बाहरमें नौ तत्त्वकी श्रद्धा यानी सम्यग्दर्शन, शास्त्र जान लिये वह ज्ञान, ऐसा मानते थे। ऐसेमें गुरुदेवका परम-परम उपकार है। कोई जानता नहीं था। उस मार्ग पर चढाया हो, उसकी दृष्टि दी हो, और स्वरूप एकदम स्पष्ट करके बताया हो तो गुरुदेवने।

सम्यग्दर्शनकी लगन लगे, कहीं उसे चैन पडे नहीं। एक ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायक आत्माके अलावा कहीं सुख नहीं है। कोई विभावमें, कहीं बाहरमें सुख नहीं है। सुख हो तो आत्मामें ही है। शास्त्रमें आता है कि उतना ही परमार्थस्वरूप आत्मा है कि