३० बार शरीर-प्रकृतिके कारण (आना नहीं होता)।
मुमुक्षुः- त्रिकालीका अनुभव नहीं होता। पर्यायका अनुभव होता है। इन लोगोंका जूठा लगता है।
समाधानः- द्रव्य अपेक्षासे त्रिकाल मुख्य है, वस्तु अपेक्षासे। वेदनकी अपेक्षासे वह मुख्य है। दृष्टि तो शाश्वत पर ही मुख्य है। दृष्टि तो शाश्वत पर, दृष्टि तो एक चैतन्य पर रखनेसे ही शुद्धपर्याय प्रगट होती है। दृष्टि तो पहलेसे आखिर तक उसकी दृष्टि तो शुद्धात्मा द्रव्य पर (होती है)। जो शाश्वत द्रव्य है, जो पलटता नहीं, जिसमें फेरफार होता नहीं, ऐसे द्रव्य पर ही दृष्टि, उसकी मुख्यता है।
फिर पर्यायको मुख्य अपेक्षासे (कहते हैं)। उसे वेदनमें, अनुभवके समय वेदनमें स्वानुभूति मुख्य होती है, तो भी उसकी द्रव्य पर दृष्टि है वह तो साथ ही रहती है। तो पर्यायके वेदनकी अपेक्षासे उसे मुख्य कहनेमें आया है। इसलिये उसमें दृष्टिको निकाल नहीं देनी है, परन्तु उस वक्त उसे पर्याय वेदनमें मुख्य है, इसलिये वेदनकी अपेक्षासे उसे मुख्य कहनेमें आया है।
वेदनमें पर्याय आती है इसलिये। वेदनमें द्रव्य नहीं आता है। तो भी दृष्टि तो द्रव्य पर ही रहती है। दृष्टि छूट जाय तो मुक्तिका मार्ग ही छूट जाय। तो मोक्षका मार्ग जो प्रगट हुआ है, वही छूट जाय। दृष्टि तो द्रव्य पर हमेंशा रहनी चाहिये। वेदनकी अपेक्षासे पर्यायको उस वक्त मुख्य कहनेमें आया है। वेदन अपेक्षासे। अनुभूति-वेदन, पर्यायकी अनुभूति होती है इसलिये।
द्रव्यका स्वरूप कैसा है, आत्माके गुण कैसे हैं, उसकी स्वानुभूति कैसी है, वह सब वेदनमें आता है। उस अपेक्षासे वेदनको मुख्य कहा है। इसलिये उसमें द्रव्यका लक्ष्य छोडना, ऐसा उसका अर्थ नहीं है।
मुमुक्षुः- वह रखकर है, दृष्टि और लक्ष्यको रखकर है।
समाधानः- वह रखकर है।
मुमुक्षुः- मर्यादित बात है।
समाधानः- मर्यादित बात है। दृष्टि अपेक्षासे दृष्टि मुख्य है और ज्ञान उसे जानता है इसलिये ज्ञानकी अपेक्षासे ज्ञान मुख्य है, उस वक्त।
मुमुक्षुः- वेदन मुख्य कहकर (पुरुषार्थको) उत्थान करनेका कोई प्रकार है?
समाधानः- उत्थान करनेका नहीं है। उसे वेदनमें पर्याय ही आती है। वेदनमें उसे द्रव्यका वेदन नहीं होता। परन्तु पर्यायका वेदन होता है। उन पर्यायोंका वेदन होता है, उसका ज्ञान करवानेको और वेदनका ज्ञान करनेके लिये है। उत्थान तो द्रव्यदृष्टिसे ही उत्थान होता है।