Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

३२

मुमुक्षुः- द्रव्यसे नहीं आलिंगित ऐसी शुद्ध पर्याय वह आत्मा है।

समाधानः- हाँ, ऐसी शुद्ध पर्याय वह आत्मा है, ऐसा कहा है। क्योंकि जैसा है वैसा, गुण-पर्याय जैसे हैं वैसे अनुभवमें आये, इसलिये वह वास्तविक आत्मा है। दृष्टि तो उसने लब्धरूपमें स्थापी है, परन्तु प्रगट उपयोगात्मकरूप नहीं है। इसलिये जो उपयोगात्मकरूप परिणमा वह आत्मा है।

मुमुक्षुः- .. उसकी विशेषता..

समाधानः- हाँ, उसकी विशेषता उस प्रकारसे। विशेषता तो है। दृष्टि तो हुयी, परन्तु दृष्टिको कार्य प्राप्त करनेके साथ भावना रहती है। दृष्टिसे करे, दृष्टिमें साथमें साधनाका बल आये वही सच्ची दृष्टि है। साधनाका बल साथमेंं न आये तो सच्ची दृष्टि ही नहीं है।

दृष्टिका हेतु क्या है? कि वह शुद्धात्मा प्राप्त कैसे हो? वह हेतु है। आत्माको पहचाननेका हेतु क्या? ये विभावपर्याय छूटकर शुद्धात्माकी पर्यायें प्राप्त हों, ऐसा उसका हेतु है। द्रव्य पर दृष्टि करनेका।

मुमुक्षुः- प्रयोजनकी मुख्यता है।

समाधानः- हाँ, प्रयोजनकी मुख्यता वही है कि द्रव्य पर दृष्टि स्थापकर उसका कार्य वह आना चाहिये कि स्वानुभूति प्राप्त हो। उसका कार्य वह आना चाहिये। दृष्टि दृष्टिरूपसे उसका कुछ कार्य न आये, तो वह दृष्टि ही नहीं है। उसे दृष्टिके साथ कार्य आना चाहिये। उसे निश्चय हुआ उसके साथ आंशिक व्यवहार तो उसे प्राप्त होना चाहिये, पर्यायको, शुद्धात्माकी पर्याय प्राप्त होनी चाहिये। फिर उसके पुरुषार्थ अनुसार (होता है)। कोई बार वह व्यवहार पर्यायको मुख्य करके (कहते हैं)। जो प्रगट हुआ वह आत्मा। दृष्टिको गौण करते हैं उस वक्त। उसका विषय मुख्य है। कार्य अपेक्षासे इसे मुख्य कहे। जैसा दृष्टिमें, जो उसका ध्येय था वह कार्य आया, इसलिये उस कार्यको मुख्य कहा।

मुमुक्षुः- बहुत सुन्दर।

समाधानः- मुनिदशाकी प्राप्ति हो, चारित्रदशा, ज्ञान-दर्शन-चारित्रकी एकता हो, वह प्रगट हुआ। तब भी दृष्टि तो है, परन्तु वह पूजनिक... प्रगटतामें पूजनिकतामें तब आये कि जब उसे प्रगट चारित्रका परिणमन होता है तब।

मुमुक्षुः- आचरण..

समाधानः- आचरण प्रधानता। आचरणमें आवे तो उसे कार्य आया। दृष्टि तो है, परन्तु कार्य आया। (दंसण मूलो) धम्मो। सम्यग्दर्शन मूल है। वहाँ चारित्र खलू धम्मो आया। चारित्र वह धर्म है। आचरणकी अपेक्षासे। दृष्टिका कार्य आये।