Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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मुमुक्षुः- चारित्र है वह दृष्टिका कार्य है?

समाधानः- हाँ, दृष्टिका कार्य वह आना चाहिये।

मुमुक्षुः- गजब बातें हैं ये सब।

समाधानः- हाँ। ऐसा है। .. काल लगे, परन्तु दृष्टिका कार्य वह आना चाहिये। तो ही यथार्थ दृष्टि है। तो ही उसका सम्यग्दर्शन, स्वानुभूति (यथार्थ है)। उसका कार्य आना ही चाहिये। राजा राजाके कार्यरूप परिणमे तो राजा, ऐसे। वैसे आत्मा आत्माके कार्यरूप परिणमे वह आत्मा।

मुमुक्षुः- एक ओर ऐसा कहे कि, परद्रव्यमें, परभावं, हेयं इति। और दूसरी ओर ऐसा कहे इसलिये...

समाधानः- वह सब सन्धि है।

मुमुक्षुः- पर्यायको उतनी गौण करवायी! क्षायिकभाव आदि चारों भाव परभाव, हेय?

समाधानः- दृष्टिमें सब निकाल दिये। क्षायिकभाव भी। केवलज्ञान भी एक पर्यायका भेद है। एक द्रव्य पर दृष्टि करनी। उदयभाव, उपशम, क्षयोपशम और क्षायिक। एक पारिणामिकभाव पर दृष्टि कर। दृष्टिमें उतना जोर है कि कोई अपेक्षा.. जिसमें अपूर्ण- पूर्ण पर्यायकी भी अपेक्षा नहीं है। ऐसा अनादिअनन्त द्रव्य जो शाश्वत कृतकृत्य द्रव्य है, दृष्टि वैसी है।

(फिर भी, पर्यायमें) जो शुद्धता, अशुद्धता है उसका ख्याल है। शुद्धता प्राप्त करनी है। पर्यायमें ज्ञानमें सब ख्याल है। दृष्टि, ऐसा अखण्ड, मैं पूर्ण द्रव्य हूँ, ऐसी दृष्टि है। केवलज्ञानकी पर्याय पर भी दृष्टि नहीं है। क्योंकि वह बादमें प्रगट होती है। यह अनादिअनन्त द्रव्य जो शक्तिरूप है, वही मैं (हूँ)। दृष्टि ऐसी जोरदार है। कोई पर्यायमें अटकता नहीं, परन्तु वेदनमें सब आता है कि ये पर्याय मुझे प्रगट हुयी, या वह हुयी, उसमें दृष्टि कहीं नहीं अटकती। सब जो अपूर्ण पर्याय निकल जाय, शुद्ध पर्याय प्रगट हो उसमें पूर्ण शुद्ध पर्याय प्रगट हो, उन सबका वेदन होता है। उस वेदनरूप परिणमा वह वास्तविक आत्मा है। अपना मूल स्वरूप था, वह उसने प्रगट किया।

... एक द्रव्य पर दृष्टि करके, फिर वह दृष्टि करके करना क्या? साधना करनेके लिये वह दृष्टि है। द्रव्य पर दृष्टि करके, फिर मैं शुद्धात्मा अनादिअनन्त हूँ। ये विभाव (मैं नहीं हूँ)। अपूर्ण, पूर्ण पर्याय जितना भी मैं नहीं हूँ, मैं तो पूर्ण शुद्धात्मा हूँ। दृष्टि करके फिर कार्य तो शुद्ध पर्यायको प्रगट करनेका कार्य लाना है। कार्य न आये तो दृष्टि नहीं है।

मुमुक्षुः- (कार्य न आये तो) उसका कोई अर्थ नहीं है।