Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

३४

समाधानः- उसका कोई अर्थ नहीं है। मुमुक्षुः- कार्य आये तो ही वह सच्ची दृष्टि है। समाधानः- कार्य आये तो ही सच्ची दृष्टि है। अंतरसे शान्ति प्रगट हो। मुमुक्षुः- फिर भी लक्ष्य कार्य पर नहीं होता। समाधानः- लक्ष्य कार्य पर नहीं है कि ये पर्याय प्रगट हुयी और वह पर्याय प्रगट हुयी, उसमेंं दृष्टि रुकती नहीं। उसका वेदन होता है, परन्तु मैं पूर्ण भरा हुआ, पूर्ण भरा हूँ। एक-एक पर्याय प्रगट हो, पूर्ण पर्याय प्रगट हो तो, उससे भी अनन्त मेरे द्रव्यमें भरा है। केवलज्ञानकी पर्याय क्षण-क्षणमें परिणमती रहती है। एक वर्तमान समयकी पर्याय प्रगट हो, तो यह मुझे प्रगट हुयी, ऐसे उसमें रुकता नहीं। उससे अनन्तगुना द्रव्यमें भरा है। द्रव्य पर, दृष्टि तो द्रव्य पर है। केवलज्ञानकी पर्याय एक समयकी है, उससे अनन्तगुनी शक्ति द्रव्यमें भरी है। क्योंकि वह तो क्षण-क्षणमें, क्षण-क्षणमें परिणमता रहता है, द्रव्य तो।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!