मुमुक्षुः- ... सत सरल है, सुगम है, सत्पुरुष मिलने चाहिये। उसमें सत्पुरुषका...
समाधानः- इस कालमें ऐसे सत्पुरुष गुरुदेव मिले, महाभाग्य!
मुमुक्षुः- यह मार्ग बताया।
समाधानः- उनकी वाणी कोई अदभुत थी।
मुमुक्षुः- भगवान आत्मा, भगवान आत्मा.. दादरवालोंने लिखा है न? भगवान आत्माकी पुकार है, हम तो पामर हैं। भगवान आत्माकी पुकार सुनकर पधारना। हम तो कोई नहीं है, पामर हैं।
समाधानः- .. गुरुदेव मिले और वस्तुका स्वरूप (दर्शाया कि) तू चैतन्य भगवान है। ऐसा कहनेवाले इस कालमें मिले, महाभाग्यकी बात है।
मुमुक्षुः- क्रियाकाण्डमें चढ गया था, बहिनश्री बार-बार कहते हैं। क्रियाकाण्डमें चढ गया था, उसमें भावप्रधान, शुद्ध परिणतिप्रधान और ज्ञायकप्रधान, वहाँ तक।
समाधानः- सब क्रियामें ही धर्म मानते थे, अंतर पर दृष्टि कहाँ थी। थोडे उपवास कर ले, थोडा धोख ले और पढ ले, ऐसा कर ले तो धर्म हो गया, ऐसा मानते थे। गुरुदेवने कहाँ अंतर दृष्टि करवायी। बाह्य क्रिया, वह तो नहीं, परन्तु अन्दर शुभ परिणाम हो वह भी तेरा स्वभाव नहीं है। बीचमें शुभ परिणाम आते तो है, लेकिन वह तेरा स्वभाव नहीं है। तू शुद्धात्मा है। अंतरमें गुणके भेद पडे उसे जानना, ज्ञान सब करना, पर्यायके, गुणके भेदका सब ज्ञान करना, दृष्टि एक आत्मा पर रखनी, एक अभेद आत्मा पर। जानना, गुणका भेद, आत्मामें अनन्त गुण हैं, उसका ज्ञान करना, पर्यायका ज्ञान करना, लेकिन भेद पर रुकना मत। दृष्टि आत्मा पर करना। गुरुदेवने कितनी सूक्ष्म बात करके अपूर्व रीतसे सबको बताया है।
मुमुक्षुः- गुरुदेवने निहाल कर दिया। ... ये बात समझानी और इतना प्रकाश जागृत किया। नहीं तो सब संप्रदायमें पडे थे।
समाधानः- हाँ। संप्रदायमें चढे थे।
मुमुक्षुः- क्रियाकाण्डमें धर्म माना था।
समाधानः- क्रियाकाण्डमें धर्म (माना था)। शुभभावकी भी किसीको मालूम नहीं