३६ था, मात्र क्रिया, इतना ही मालूम था।
मुमुक्षुः- कमजोर है, नहीं तो ऐसा क्यों बने?
समाधानः- पंचमकाल है।
मुमुक्षुः- इतने लोग आते हैं, सुनते हैं, देखते हैं कि गुरुदेवकी वाणी अथवा गुरुदेवका तत्त्व क्या था। फिर भी दूसरी प्रवृत्तिमें पड जाते हैं।
समाधानः- गुरुदेवने तो एक शुद्धात्मा पर दृष्टि करनेको कहा है। एक आत्मा अन्दर तू देख, कोई अपूर्व है। पंचमकाल है न, सब चलता है। भगवानकी और मुनिओंकी वाणी सुनकर क्षण-क्षणमें अंतर्मुहूर्तमें सम्यग्दर्शन प्राप्त कर ले। क्षण-क्षणमें, अंतर्मुहूर्तमें। कोई मुनिदशा प्राप्त कर ले, ऐसा काल था। वह काल अलग था। यहाँ तो अभी सम्यग्दर्शनका नाम और उसकी बात सुनने मिलना मुश्किल, बात सुने तो प्राप्त करना दुर्लभ, ऐसा यह काल हो गया है। महापुण्यके कारण गुरुदेवसे बात सुनने मिली, सम्यग्दर्शनकी और स्वानुभूतिकी। उसकी रुचि, अनेक जीवोंको गुरुदेवके प्रतापसे रुचि जागृत हुयी। .. मुश्किल, गुरुदेवके प्रतापसे रुचि जागृत हुयी।
मुमुक्षुः- पहले तो इस ओर मुडना मुश्किल था। गुरुदेवके प्रतापसे कितने जीव इस ओर मुडे।
समाधानः- कितने मुड गये।
मुमुक्षुः- फिर भी अपने .. बैठे हैं... है, पंचमकाल तो अनादि कालका है। विशेषता यह है, विशेषता इसकी है।
मुमुक्षुः- गुरुदेव देकर गये हैं, गुरुदेव कह गये हैं कि माताजी विराजते हैं, तब तक स्पष्टीकरण आता है। आपके लिये अभी भी एक मौका है। अपने लिये तो ... ऐसा है।
समाधानः- गुरुदेवने सबको जागृत किया है। पूरे हिन्दुस्तानमें, भारतमें सबको जागृत कर दिया।
मुमुक्षुः- परदेशमें।
समाधानः- हाँ, देश-विदेश, आफ्रिकामें हर जगह, विलायतमें हर जगह। कितना प्रचार हुआ। पहले वह आते थे, समयसार आदि पढते हैं तो नींद आती है। ऐसा बोलते थे। पहले शुरूआतमें। और वह पण्डित तो ऐसा कहे कि आत्माकी बात आये उसे हम छोड देते थे। चिदानन्द आदिकी बात आये।
मुमुक्षुः- कैलाशचन्द्रजी भाषणमें बोले थे।
समाधानः- हाँ, कैलाशचन्द्रजी पण्डितने भाषणमें बोले। एक कोई भाई थे, वह कहते थे, समयसार पढे तो नींद आती है। ऐसा कोई कहता था। कैलाशचन्द्रजी पण्डित