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कहते थे, चिदानन्द आत्मा ऐसा आये तो हम छोड देते थे। यहाँ इसकी बात है, ये तो आत्माकी बात है।
मुमुक्षुः- वह तो वर्णन किया है।
समाधानः- हाँ, ऐसा करके (छोड देते थे)।
मुमुक्षुः- तिर्यक प्रचय और ऊर्ध्व प्रचय, वह आये तो उसका वर्णन करते। ज्ञानघन आनन्दकंद आये तो चलने दे। ये तो वर्णन किया है।
समाधानः- गुरुदेवके प्रतापसे अभी सबको अध्यात्मकी इतनी रुचि (हो गयी है)। सब वांचन करने (लगे)। सब स्त्रियां वांचन करे। भगवानजीभाईकी औरत बेचारे वांचन करे। उतना वांचन करे उतनी रुचि है न। .. चले जाते। टेप आदि...
आत्मा अन्दर चैतन्य स्वरूप आत्मा है, ज्ञायक है। अनन्त गुणसे भरा आत्मा है। उस आत्मामें आनन्द, अनन्त गुण सब आत्मामें भरा है। वह कैसे पहचानमें आये और कैसे प्रगट हो, उसके लिये यह सब करनेका है। यह शरीर भिन्न है। अन्दर विभावस्वभाव आत्माका नहीं है। अंतरमें आत्माकी पहचान कैसे हो? बार-बार उसका विचार, वांचन वह सब करने जैसा है। उसकी लगन, महिमा आदि।
शास्त्रमें आता है न? स्फटिक तो स्वभावसे निर्मल है, परन्तु उसमें लाल-पीले फूल दिखते हैं इसलिये मलिन दिखता है। वैसे आत्मा स्वभावसे तो निर्मल है। मूल वस्तुमें तो कहीं मलिनता होती नहीं। परन्तु विभावको निमित्त है, कर्मका निमित्त है। पुरुषार्थकी मन्दतासे स्वयं उसमें जुडता है इसलिये विभाव होता है, अपना मूल स्वभाव तो नहीं है। परन्तु उसकी दृष्टि,.. आत्मा निर्मल स्वभाव है, उस पर दृष्टि करे, उसका भेदज्ञान करे तो विभाव छूट जाता है। पहले उसका भेदज्ञान हो, फिर उसमें लीनता बढते-बढते वह छूट जाता है। उपाय तो एक ही है।
शिवभूति मुनिको ज्यादा नहीं आता था। भूल जाते थे। मातुष और मारुष। गुरुने कहा, कहीं राग नहीं करना, द्वेष नहीं करना। भूल गये। फिर गुरुने क्या कहा था? वह भाई दाल धो रही थी। गुरुने कहा, दाल भिन्न और छिलका भिन्न। वह दाल धो रही है। ऐसा गुरुने कहा था कि, आत्मा भिन्न और ये विभाव भिन्न, मेरे गुरुने ऐसा कहा था। ऐसा करके अंतरमें भेदज्ञान करके अंतरमें इतनी उग्रता की, ज्ञायककी धाराकी इतनी उग्रता करी। और उग्रता करके अन्दर दृष्टि ऐसी स्थापित कर दी, उग्रतामें भेदज्ञान और उसमें उनकी परिणति ऐसी उग्र हो गयी कि, केवलज्ञान प्रगट कर लिया। उतना पुरुषार्थ अंतरमें, अंतर्मुहूर्तमें उतना पुरुषार्थ किया।
शुभभाव, शुभाशुभ दोनों भाव आत्माका स्वभाव नहीं है, तो मुनिपना मुनिओं किसके आश्रयसे पालेंगे? उसमें आता है। पंच महाव्रत आदि सब शुभ कहते हो तो पंच