Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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इस टीकाकी रचनामें मेरी परिणति शुद्ध होओ। ऐसा बोले। वहाँ मानो खेद होता है कि, अरे..! इस व्यवहारमें कहाँ आ गये? फिर यहाँ ऐसा कहे। मानो कथनी करनेसे मेरी शुद्धि होती हो, ऐसा बोले। अन्दर शुद्धि तो उनकी परिणति द्रव्यदृष्टि है, चिन्मात्र मूर्ति अन्दर जो है उसकी द्रव्यदृष्टिका बल है और अन्दर लीनता बढती जाये। उससे शुद्धि होती है। तो कहते हैं, इस टीकासे मेरी परिणति शुद्ध होओ, ऐसा बोलते हैं। आचार्यदेवका आशय ग्रहण करना, अन्दर समझकर आशय करने जैसा है।

मुमुक्षुः- कथनको कोई एकान्तमें खीँच ले तो नहीं चलता।

समाधानः- एकान्तमें खीँच ले तो भूल होती है। दूसरी ओरका ख्याल रखना चाहिये। आचार्यदेवने क्यों इस पर वजन दिया है।

मुमुक्षुः- तमाम सिद्ध शुद्ध गुण-पर्याय वाले हैं, ऐसा शब्दप्रयोग किया है।

समाधानः- शुद्ध गुण-पर्याय वाले हैं। द्रव्यदृष्टिमें सबकुछ कह सकते हैं। कुछ दिखता ही नहीं, सब शुद्ध गुण-पर्याय वाले सिद्ध जैसे हैं, ऐसा कहनेमें आये। यहाँ ज्ञानमें ख्याल है। प्रमत्त-अप्रमत्त नहीं हूँ, मैं तो एक ज्ञायक ही हूँ। हर बार ज्ञायक ही हूँ। प्रमत्त-अप्रमत्त दशा नहीं है, ऐसा आचार्यदेव कहना नहीं चाहते। भूमिका तो है, लेकिन मैं तो एक ज्ञायक ही हूँ। भूमिकामें खडे हैं, फिर भी मैं तो एक ज्ञायक ही हूँ, ऐसा कहते हैं।

ज्ञायक यानी छठ्ठी-सातवीं भूमिका नहीं है, ऐसा नहीं कहना चाहते। उस भूमिकामें खडा हूँ, फिर भी मैं ज्ञायक ही हूँ। इसलिये साधनाकी भूमिका ही नहीं है, ऐसा नहीं कहना चाहते। द्रव्यदृष्टिका बल ऐसा है कि अन्दर वह सब आता है। पर्यायको गौण करता जाता है। लेकिन पर्याय है ही नहीं, ऐसा नहीं कहना चाहते। स्वभावमें अन्दर अशुद्धताका प्रवेश नहीं हुआ है, ऐसा कहे। सब शुद्ध ही है, शुद्ध देखते हैं। पर्यायको एकदम गौण कर देते हैं।

अनन्त कालसे द्रव्य स्वरूपको नहीं पहचाना, भ्रान्तिके कारण सब परके साथ मिश्रित होकर मानों मैं परको करुँ और पर मेरा करे, ऐसी अनादि कालसे भ्रान्ति (चलती है)। ऐसी अशुद्धता, वैसी भ्रान्ति और अशुद्धता उसे हो रही है। उसे उस प्रकारकी अस्थिरता और भ्रान्ति दोनों होते हैं। उसमेंसे छूटनेके लिये अनन्त कालसे छूटता नहीं। जीवने द्रव्य-वस्तुको पहचाना नहीं है।

द्रव्यदृष्टिके बल बिना वह आगे नहीं बढता। इसलिये आचार्यदेव द्रव्यदृष्टिके बलसे समझाते हैं कि इसकी महिमा तो कर, इस पर तुझे अनन्त कालसे वजन भी नहीं आता तो तू तेरा स्वरूप पहचान। तो उसमेंसे तेरी शुद्ध पर्याय प्रगट हो। लेकिन मूल अस्तित्वको ग्रहण किये बिना, ऐसे ही तीव्र कषाय और मन्द कषाय, शुभाशुभमें घूमता