Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1272 of 1906

 

ट्रेक-

१९६

३९

मुमुक्षुः- जिसे जिसकी रुचि हो वहाँ कितना पुरुषार्थ करता है। करता है कि नहीं? संसारमें। यहाँ इसका पुरुषार्थ (करना)। रुचिकी क्षति है।

समाधानः- .. तो सब मुडे हैैं। रुचि तो एक आत्माका करने जैसा है, यह सब बाहरमें धर्म नहीं है। सर्व शुभाशुभ भावसे आत्मा भिन्न है। उस दृष्टि और उस रुचिकी ओर तो मुडे हैं। अब स्वयंको पुरुषार्थ करना है। स्वयंको करना है। फिर कोई कहाँ रुके, कोई कहाँ रुके। लेकिन करनेका तो यह एक ही है। गुरुदेवने मार्ग तो बताया है।

मुमुक्षुः- थोडा कुछ काम करे तो फँस जाय कि मैंने आज बहुत बडा काम किया। कर्ताबुद्धि पडी है न।

समाधानः- मैं ज्ञायक हूँ, भूल जाता है। मैं तो जाननेवाला हूँ। बाहरका जो बननेवाला हो वैसा बनता है, मैं तो मात्र निमित्त बनता हूँ। मेरे रागके कारण, रागके कारण, मेरा जो राग होता है, अज्ञानअवस्थामें रागका कर्ता है। बाहरका तो कर सकता नहीं। राग वह अपना स्वभाव नहीं है। लेकिन उस रागका अज्ञान अवस्थामें कर्ता है। परन्तु मैं कुछ कर नहीं सकता, मैं तो ज्ञायक हूँ। वह भूल जाता है। ज्ञाता होनेके बाद अल्प अस्थिरता आवे, उसे राग आता है। परन्तु वह बाहरका तो कुछ कर नहीं सकता। बाहरके फेरफार करना वह तो उसके हाथकी बात ही नहीं है। मात्र भाव करता है। भाव करे।

मुमुक्षुः- कुछ याद नहीं आता। वहाँ जाय तो शोरगुलमें यहाँ जाना है, वहाँ जाना है। बाहर निकले कि भूल गये। सहज परिणाम जो यहाँ हो, ऐसे वहाँ...

समाधानः- यहाँ दर्शन हो, वहाँ सब भूल जाते हैं। ये भूमिमें ऐसा है। गुरुदेवने बहुत वषा तक वाणी बरसायी, यहाँ विराजते थे। यहाँ (आकर) परिणाम बदल जाय। घर भूल जाय और ये सब याद आये।

मुमुक्षुः- यह भूमि भी मंगल है।

समाधानः- आता है न, द्रव्य मंगल, क्षेत्र मंगल, काल मंगल और भाव मंगल। महापुरुषका द्रव्य-गुरुदेवका द्रव्य मंगल, वे जहाँ विराजे वह क्षेत्र मंगल, उन्होंने जो काल अन्दरसे प्रगट किया वह काल मंगल, उनका भाव मंगल। अन्दर जो शुद्ध प्रगट की वह भाव मंगल। सब मंगल ही है।

महावीर भगवान मोक्षमें गये वह काल मंगल कहनेमें आता है न? महावीर भगवानका जन्म-दिन था, चैत शुक्ला-१३। उस १३को मंगल काल कहनेमें आता है न। उनका जहाँ जन्म हुआ वह क्षेत्र मंगल।

मुमुक्षुः- ये कहीं सुनने नहीं मिलता। कहीं नहीं। कहीं सुनने नहीं मिलता।