Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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समाधानः- वह है। परन्तु उसके टूकडे, उसके भेद-टूकडे नहीं करना। है तो सही, लेकिन टूकडा नहीं करना।

मुमुक्षुः- परन्तु दृष्टि उस पर..

समाधानः- दृष्टि अखण्ड पर रखनी। एक आम हो, वह हरा है, पीला है या खट्टा है, या मीठा है, उन सबका तू ज्ञान कर, परन्तु वह तो एक अखण्ड वस्तु है। उसमें कोई टूकडे नहीं है। रसका या रंगका टूकडा नहीं होता। वह सब तो अखण्ड है। ऐसे तू गुणका ज्ञान कर। उसमें भेद करके उसमें रुकना मत। रुकनेसे तो राग होगा। ... मीठा है, दूध ऐसा है। वैसे आत्मा ज्ञान है, आत्मामें दर्शन है, आत्मामें चारित्र है। ऐसे सब विचार कर, लेकिन वह सब तो एकमें है। रागको जड कह दिया। और एक बार कहा, तेरी अपनी पर्यायमें होता है। दोनों अपेक्षा (समझनी चाहिये)।

मुमुक्षुः- समयसारमें बहुत बार उलझ जाते हैं। एक बार जडमें रखा, एक बार (कहा) जीवका ही भाव है वह। शान्तिसे उसे... न बैठे तो उसे पकड नहीं पाते।

समाधानः- वैसे स्फटिक निर्मल है। उसमें प्रतिबिंब उठते हैं। वैसे आत्मा निर्मल है, उसमें प्रतिबिंब लाल-पीले उठते हैं, वह निमित्त ओरसे है। निमित्त-ओरसे विभाव हो वह तेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे (होता है)। द्रव्य आत्मा तो निर्मल है। ऐसे आत्मामें गुणके भेद पडे कि आत्मा ज्ञान है। वह तो विभावका भेद पडा। लेकिन जैसे स्फटिक श्वेत है, स्फटिक प्रकाशवाला है। ऐसे आत्मा निर्मल है, आत्मा ज्ञानमय है। द्रव्यमें ही, तेरी वस्तुमें भेद पडा। उसमें तू अखण्ड दृष्टि कर। वह तो रागका भेद पडा। रागको जड कहा, ये तो गुणका भेद पडा। उसमें भी तेरी दृष्टि तो अखण्ड पर कर।

ऐसे गुणस्थानका भेद पडा। केवलज्ञान, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान वह सब ज्ञान तो आत्मामें प्रगट होते हैं। तो उसमें भेद पर दृष्टि नहीं करना, दृष्टि अखण्ड पर तू कर। लेकिन ज्ञान सबका कर। वह निश्चय-व्यवहारकी सन्धि ऐसी है कि उसमें बराबर समझे तो (समझमें आये)। ऐसा है।

मुमुक्षुः- बहुत उलझ जाय ऐसा है। हमारे जैसे उसमें बहुत उलझ जाते हैं। परन्तु जाननेवाला उसे उसके गुणसे जानता नहीं, यहाँ रखा हो तो काला लगे, यहाँ रखो तो अलग लगे।

समाधानः- अलग लगे, काला लगे, लाल लगे। उसकी दृष्टि स्थूल है। जिसकी दृष्टि आत्मा पर है, उसे आत्मा स्फटिक जैसा लगता है। दूसरोंको रागी, द्वेषी, क्रोधी लगता है। भेदज्ञान करे वह तो कहे, मैं तो भिन्न हूँ। लेकिन वह होता है, वह सिर्फ जड नहीं है, मेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे होता है। परन्तु मेरा स्वभाव नहीं है। मेरा स्वभाव उससे भिन्न है। उसे जानता है कि यह होता है। मेरे पुरुषार्थकी मन्दता है, उसे तोडनेका