अमृत वाणी (भाग-५)
६० प्रयत्न करता है। यदि बिलकूल जडमें डाल दे तो फिर पुरुषार्थ किस बातका? जडमें डाल दो तो ऐसा हो।
मैं स्फटिककी भाँति भिन्न हूँ। परन्तु ये जो राग खडा है वह मेरेमें नहीं है। लेकिन मेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे खडा रहता है। इसलिये मेरी परिणित पुरुषार्थ करनेका बाकी रहता है।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!