६४ कोई गुरुके पास, कोई देवके पास सुना होता है, उसमें-से उसे संस्कार जाग उठते हैं।
मुमुक्षुः- पहले सुना होता है?
समाधानः- पहले सुना होता है।
मुमुक्षुः- फिर आयुष्यका बन्ध पड गया हो, इसलिये..
समाधानः- इसलिये तिर्यंच हो जाता है।
मुमुक्षुः- वहाँ फिर ऐसा भाव प्रगट करता है।
समाधानः- ऐसा भाव प्रगट कर लेता है।
मुमुक्षुः- किसीको अभ्यास करनेकी शक्ति हो, और किसीको कम हो, उसे रुचिका भाव हो, तो उसे पकड सकता है न?
समाधानः- अभ्यास करनेकी अर्थात श्रुतज्ञान कम हो, ऐसे। किसीको शास्त्रका कम हो लेकिन भावभासन हो जाय कि मैं यह चैतन्य हूँ। लंबे समय अभ्यास करना पडे ऐसा नहीं होता, अभ्यास करनेकी शक्ति ऐसे नहीं, किसीको लंबा समय अभ्यास करना न पडे, एकदम पुरुषार्थ उत्पन्न हो जाय। किसीको लंबे समय तक अभ्यास करे तो होता है। किसीको एकदम पुरुषार्थ (उत्पन्न हो जाता है)। मन्द-मन्द पुरुषार्थ करे तो लंबे समय अभ्यास करे। एकदम पुरुषार्थ उत्पन्न हो तो अल्प समयमें हो जाता है।
मुमुक्षुः- एकदम उत्पन्न हो, उसका कारण क्या?
समाधानः- उसका कारण स्वयंकी योग्यता। अकारण पारिणामिक द्रव्य है। चैतन्यद्रव्यकी ऐसी कोई योग्यता उसे होती है कि उसे प्रगट हो जाता है। किसीको अन्दर..
समाधानः- अपना पुरुषार्थ कारण है। ऐसी स्वयंकी योग्यता, तैयारी अपने कारणसे है।
मुमुक्षुः- आत्मधर्ममें आया कि कारणमें, पुरुषार्थमें.. तीन-चार कारण हैं न? तो वहाँ क्या कारण लेना? कारणमें कुछ कचास हो? पुरुषार्थमें कचास है? रुचिमें कचास है?
समाधानः- उसे सबकी कचास है। आत्मधर्ममें...
मुमुक्षुः- अन्दरमें कारण तो त्रिकाली है न?
समाधानः- हाँ, स्वयं स्वयंका कारण है। उसे बाहरके कारण-काल, स्वभाव, स्वभाव तो अपना है, काललब्धि है उसमें पुरुषार्थ साथमें होता ही है। सबमें पुरुषार्थ तो साथमें होता ही है। अपना पुरुषार्थ कारण बने। क्षयोपशम-वैसा उघाड हो, वैसा काल पक गया हो, और निज पुरुषार्थका कारण बनता है। पुरुषार्थ तो सबमें होता