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ही है। पुरुषार्थकी कचाससे सबमें कचास है। तू तैयार हो और तेरा पुरुषार्थ तैयार हो तो सब कारण प्राप्त हो जाते हैं। कोई कारण बाकी नहीं रहते। तेरे पुरुषार्थकी कचाससे कचास है।
मैं पुरुषार्थ करुँ और काल पका नहीं है, और मेरा स्वभाव नहीं है या मुझे कुछ सुनने नहीं मिला है, देशनालब्ध नहीं हुयी है, कोई कारण तुझे बाकी नहीं रहेंगे। तेरा पुरुषार्थ यदि जागृत हुआ होगा तो उसमें सब कारण तुझे प्राप्त हो जायेंगे। और यदि तेरे पुरुषार्थकी कचास है तो दूसरे कारण होंगे तो भी पुरुषार्थकी कचास होगी तो तुझे (प्राप्त) नहीं होगा। पुरुषार्थकी कचाससे सब कचास है।
तुझे यदि अंतरमें-से करना हो तो तुझे देशना नहीं मिली है और.. लेकिन मैं किये बिना रहूँगा ही नहीं। (ऐसेमें) देशना प्राप्त हुयी ही होती है। जिसके पुरुषार्थका उत्थान हुआ हो उसे देशना, काल सब होता ही है। ऐसा पुरुषार्थके साथ प्रत्येक कारणोंका सम्बन्ध है।
मुमुक्षुः- हमें ऐसा होता है कि अपने यह सब योग मिला है तो आत्माका तो शीघ्रतासे कर लेना है। और उतना पुरुषार्थ उत्पन्न नहीं होता है।
समाधानः- पुरुषार्थकी कचास उतनी कचास है।
मुमुक्षुः- रुचिमें भी कचास है न?
समाधानः- हाँ, पुरुषार्थकी कचास तो रुचिमें भी कचास है। दोनों कचास है।
मुमुक्षुः- अन्दरमें ऐसा है कि चाहे जैसे भी, मरकर भी यही करना है, दूसरा तो कुछ नहीं करना है।
समाधानः- भावना होती है, लेकिन वह कार्यान्वित नहीं होती तबतक नहीं होता है। चाहे जैसे भी करना है, लेकिन कार्यान्वित नहीं होता है।
मुमुक्षुः- कार्यान्वित नहीं होता है, तो फिर भावनाका फल क्या है?
समाधानः- भावनामें कचास है। भावनाका फल नहीं आता है, ऐसा नहीं है। चाहे जैसे भी करना है और करता नहीं है, अपनी कचास है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- अपनी ही कचास है।
मुमुक्षुः- तो भावनाका क्या हुआ?
समाधानः- भावनाका क्या हुआ? भावना कचासवाली है। भावना कचासवाली है। भावना उग्र हो तो कार्य हुए बिना रहे नहीं।
मुमुक्षुः- ऐसा है ही।
समाधानः- स्वयं ऐसा करता रहा कि चाहे जैसे भी करना है, फिर छोड दिया।