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(करता है), उस उपयोगसे (ग्रहण नहीं होता)। लेकिन वह उपयोग स्वयंकी ओर मुडे तब सूक्ष्म होता है। उपयोग जो बाहर जा रहा है वह स्थूल है, स्वयंकी ओर मुडनेवाला उपयोग, चैतन्य अरूपी है उस अरूपीको ग्रहण करनेवाला उपयोग सूक्ष्म है। स्वयंको- ज्ञायकको ग्रहण करे कि यह ज्ञायक है, इसकि सिवाय यह सब जो है वह मुझसे भिन्न है। यह विकल्प है, वह सब आकूलता है। इसप्रकार ज्ञायकको ग्रहण करके, उसकी प्रतीति करके, उसमें लीनता करके विकल्प छूट जाये और स्वयं आत्मामें लीन हो जाये, उपयोग अंतरमें लीन हो जाता है। जो आनन्दका अनुभव होता है उसे वह बराबर पकड सकता है। उसे ख्याल (आ जाता है), दोनों भिन्न-भिन्न हो जाते हैं।
स्वयं स्थूलरूपसे वेदन करे तो सुख-दुःखका वेदन उसे होता है। शरीरमें शाता अथवा अशाता होती है उसका वेदन उसे होता है कि, शरीरमें कोई रोग है, उसका वेदन होता है, उसका दुःख होता है। वह उसे ख्यालमें आता है। निरोगता हो तो उसे ख्याल आता है कि अभी रोग नहीं है। वैसे, जैसे राग-द्वेषका ख्याल आता है कि यह दुःख है, यह सुख है। ऐसा तो स्थूल ज्ञानमें भी पकडता है। तो अरूपी आत्माको ग्रहण करे, अन्दर लीन होता है तब सब विकल्प छूट जाते हैं। विकल्प छूटकर आत्माको ग्रहण करता है और बराबर स्वयंके आनन्दको पकड सकता है। उपयोग निर्मल हो गया। स्वयंके आनन्दका अनुभव, स्वयं स्वयंको जान सकता है। आकूलता छूट गयी और निराकूलता (वेदनमें आयी)। आनन्दस्वरूप आत्मा प्रगट हो, वह आनन्द छिपता नहीं।
मुमुक्षुः- चाहे जैसे भयंकर दुःख हो, जब उसे पकडमें आता है, उस वक्त उसे शाता होती है? अन्दरसे जो आनन्द आना चाहिये, जो लक्ष्य छूटना चाहिये, उस रोगके प्रति जो उसने अनादिका अभ्यास किया है, भयंकर रोग हो उस वक्त भी वह भेदज्ञान करके आत्माकी ओर मुडे तो उसे उस वक्त अन्दर थोडी शान्ति होती है, तो वह लक्ष्य छूटता है तब उसे ख्याल आता है कि आत्मा है, परन्तु अभी पकडा नहीं है। तब थोडा-थोडा ख्याल आता है। लेकिन वह सच्चा नहीं है। जब वह बराबर आत्माको पकडे तब ही आनन्दका वेदन होता है।
समाधानः- आत्मामें लीन होता है तब ही आनन्द होता है। अन्दरसे स्वयंको ग्रहण करे। अभी स्थूलरूपसे ग्रहण करता है तो उसे शान्ति (लगती है, वह) आकूलता मन्द होती है, लेकिन यथार्थ शान्ति आत्मामें-से नहीं आयी है। रोगमेंसे विकल्प पलटे कि यह सब रोग शरीरमें है, मेरेमें नहीं है। इसप्रकार भावनासे, विकल्पसे शान्ति रखे। लेकिन वह अलग शान्ति है-मन्द कषायकी शान्ति है। अंतर आत्मामेंसे जो शान्ति आती है वह अलग ही आती है। विकल्प छूटकर जो शान्ति आये, विकल्प छूटकर जो