Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

७२

ये कोई सुखका कारण नहीं है, ये कोई महिमावंत नहीं है। महिमावंत हो तो मेरा आत्मा है। ये कुछ महिमारूप नहीं है। ऐसे निर्लेपता आ सकती है। ऐसा सब करके अनन्त आत्माओंने ऐसे कार्य किये हैं, महापुरुष गृहस्थाश्रममें रहकर निर्लेप रह सके हैं। प्रत्येक आत्मा ऐसा शक्तिमान है कि जो कर सकता है।

मुमुक्षुः- लेकिन वह परमात्मामें मिल जाता है। आत्मामें जब वीतरागता आ जाय, सब छोड सके, आत्माका ज्ञान हो तो आखिरमें वह परमात्मामें मिल जाता है?

समाधानः- मिल न जाय, वह स्वयं स्वतंत्र रहे। ऐसे अनन्त द्रव्य हैं, ऐसे आत्मा परमात्मारूप हुए हैं। सिद्धालय है उसमें प्रत्येक द्रव्य स्वयं अपनी स्वानुभूति स्वतंत्र करते हैं। वीतराग होकर स्वयं स्वतंत्र रहता है, किसीमें मिल नहीं जाता। उसकी जात एक है। एक जातके हो जाते हैं। एक जातके, स्वानुभूति एक जातकी करे, लेकिन प्रत्येक स्वतंत्र हैं। स्वयं अपनेमें (रहता है)। वह अरूपी है ऐसा कि उसे कोई ज्यादा क्षेत्र नहीं चाहिये। इसलिये आकाशके अमुक क्षेत्रमें अनन्त जीव रह सके, ऐसा परमात्मा बन जाय। जात एक, परन्तु प्रत्येक स्वतंत्र रहते हैं।

मुमुक्षुः- गुरुदेवको समर्पण करनेसे आत्माका ज्ञान हमें हो, वह बात सत्य है? गुरुदेवको अपना अहंभाव अर्पण कर दे, मैं हूँ ही नहीं, आत्मा ही हूँ, जो आपके अन्दर है वही मेरेमें है, लेकिन आपने सब प्राप्त कर लिया, आपने सब समझ लिया, अनुभव हो गया। हम समझे, हमें अनुभव नहीं हुआ है। अनुभव आपकी कृपासे हो या हमारे पुरुषार्थसे ही होता है? आपकी कृपा भी चाहिये? गुरुदेवकी? जिसे गुरु माना उनकी कृपा और अपना पुरुषार्थ दोनों चाहिये या अकेला पुरुषार्थ ही चाहिये?

समाधानः- जो पुरुषार्थ करता है उसे साथमें कृपा होती ही है। निमित्तमें गुरु होते हैं और उपादानमें स्वयं होता है। दोनों साथमें होते हैं। गुरुकी कृपा तो उसमें साथमें होती ही है। वस्तुस्थिति-से स्वयं पुरुषार्थ करे तब होता है, परन्तु गुरुकी कृपा तो साथमें होती है।

मुमुक्षुः- अब, आपको मैंने गुरु माना। अब, यहाँ रोज तो नहीं आ सकती। मुंबई रहती हूँ, बच्चे हैं... श्रद्धापूर्वक यह मानती हूँ। तो संसारमें रहकर संसारसे अलिप्त रहकर, मनसे अलिप्त रहकर, संसारके कार्य चलते रहे, अलिप्त रहकर भी आपको गुरु मानकर, मैं आपके वचन पढकर, करके मैं प्राप्त कर सकती हूँ? या प्रत्यक्ष गुरु चाहिये ही?

समाधानः- स्वयं प्राप्त कर सकता है। स्वयं कहीं भी बैठकर पुरुषार्थ करके सच्चा समझे तो प्राप्त कर सकता है। प्राप्त कर सकता है। ऐसा है कि अनादि कालमें जीव जन्म-मरण करते-करते उसे एक बार गुरु अथवा देव कोई मिलते हैं। उनकी प्रत्यक्ष