Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1312 of 1906

 

ट्रेक-

२०२

७९

हूँ। ऐसा कितना ही विपरीत मानता है।

मैं सहज ज्ञानपुंज आत्मा आनन्द स्वरूपसे भरा हुआ हूँ। क्षेत्र, मेरा घर, मेर स्वघरमें रहनेवाला हूँ। परघरमें रहनेवाला नहीं हूँ। अन्यका स्थान, अन्यका रहनेका क्षेत्र मेरेमें प्रवेश नहीं करता। मेरा क्षेत्र उसमें जाता नहीं। अन्यका क्षेत्र देखकर, यह सब कलंक है, ऐसे निकालने जाता है तो स्वयंको निकाल देता है। ऐसी अनेक प्रकारसे बात है। यदि अपनेमें-से दूसरेको निकालने जाता है तो स्वयंको भी निकाल देता है। अमुक कालमें परिणमन करे तो उस कालमें मैं परिणमा तो उसी क्षण मेरा नाश हो गया। दूसरेकी पर्याय परिणमे तो मैं परिणमूं और मेरा नाश हो जाय।

अथवा ऐसा कहे कि उसके आलंबनकालमें ही मेरा अस्तित्व है। जब ज्ञेयोंका आलम्बन हो तो ही मेरा अस्तित्व है। ज्ञेयोंका आलम्बन लूँ तो ही मेरा अस्तित्व टिके। तो उसका आलम्बन लेता ही रहता है। उसके आलम्बन बिना मेरा नाश हो जायगा। तो आलम्बन लेनेमें आकुलता-आकुलता करता रहता है। ज्ञेय.. ज्ञेय.. ज्ञेय.. मानों ज्ञेयोंके साथ एकत्व (हो जाता है)। ज्ञेयोंका आलम्बन न हो तो (मैं कैसे टिकूँगा)? मेरा ज्ञान मेरे ज्ञानसे (होता है)। मैं स्वावलंबी हूँ। मेरा ज्ञान स्वयं परिणमनेवाला है। उसका-ज्ञेयका आलम्बन हो तो ही मेरा ज्ञान है, ऐसा नहीं है। मैं मेरे ज्ञानसे, स्वयं सहज ज्ञानका पुंजस्वरूप स्वतःसिद्ध हूँ। मेरा सहज स्वतःसिद्ध ज्ञानके पुंजस्वरूप हूँ। ऐसे मेरा अस्तित्व है।

अपने अस्तित्वको ग्रहण करता है। केवलज्ञानी भगवान प्रगटरूपसे परिणमे। परन्तु मैं मेरी शक्तिरूप हूँ, मेरा अस्तित्व मुझसे है। कार्य है तो कारण है, ऐसा नहीं। कारण स्वयं स्वतःसिद्ध है। परन्तु जाननेके लिये कार्य पर दृष्टि करता है कि कार्य ऐसा प्रगट होता है। कारण तो सब अंतरमें पडे हैं। कार्य है तो कारण है, (ऐसा नहीं), कारण स्वतः है। वह ज्ञान करता है कि ऐसा कार्य है। मेरेमें ऐसी शक्ति हैं।

एक स्वतः असाधारण ज्ञानगुण उसमें है। उस ज्ञानगुणसे उसे नक्की होता है कि ऐसे अनन्त गुण हैं। ऐसा असाधारण ज्ञानगुण जीवमें है। उससे वह अपना अस्तित्व ग्रहण कर सकता है। जो द्रव्य हो, वह अनन्त शक्तिवंत हो। मेरेमें ऐसी अनन्त शक्ति भरी है। ऐसे ज्ञान तो असाधारण (है), इसलिये वह प्रगट होनेसे उसे ख्यालमें आये ऐसा है। उसके अलावा दूसरे अनन्त गुण जीवमें हैैं। अनन्त शक्तिसे भरपूर मैं भरा हूँ। स्वयं अपनी प्रतीत कर सकता है।

मूल भूल अपनी अस्तित्व ग्रहण करनेमें होती है। अस्तित्व और नास्तित्वमें भूल करता है। द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे, भावसे। गुणका अस्तित्व मेरेसे, ज्ञानका अस्तित्व मेरेसे, ज्ञेयसे नहीं। ऐसे अनेक प्रकारसे स्याद्वादी है वह यथार्थ जानता है। उसे भेदज्ञान यथार्थ