८० होता है। मेरी वस्तु स्वयं है। मेरा क्षेत्र मेरेमें है। मैं स्वयं मेरे घरमें रहनेवाला हूँ। मैं मेरे ज्ञानगुणरूप परिणमनेवाला हूँ। ज्ञेय ज्ञात जरूर होता है, परन्तु मैं मेरे ज्ञानसे परिणमनेवाला हूँ, ज्ञेयसे परिणमनेवाला नहीं हूँ। ज्ञेयके कारण परिणमनेवाला नहीं हूँ। ज्ञेय परिणमे तो मैं परिणमूं ऐसा नहीं है। अथवा ज्ञेयका आलम्बन लूँ तो परिणमुं, ऐसा नहीं है। मैं स्वयं मेरे ज्ञानसे परिणमनेवाला हूँ। मैं स्वयं मेरे ज्ञानसे परिणमनेवाला, मेरे गुण स्वतःसिद्ध हैं। मेरी पर्यायें, ज्ञानका परिणमन होकर पर्याय होती है। ज्ञेय परिणमन करके पर्याय नहीं आती है, मेरा ज्ञान परिणमन करके पर्याय आती है। परन्तु उसमें ज्ञात होता है, ज्ञेयोंका स्वरूप ज्ञात है, परन्तु मेरा ज्ञान परिणमन करके वह पर्याय आती है।
ज्ञेय परिणमन करके मेरेमें पर्याय नहीं आती है, ज्ञेयकी पर्याय ज्ञेयमें है। मेरे ज्ञानकी पर्याय मेरेमें है। ज्ञान परिणमन करके पर्याय आती है। परन्तु उसमें ज्ञान ज्ञेयको जानता है। परिणमनेवाला मैं हूँ। (ज्ञान) स्व-पर दोनोंका होता है, परन्तु ज्ञान स्वयं परिणमन करके वह पर्याय आती है। ज्ञेय परिणमन करके मेरेमें पर्याय नहीं आती है, मैं स्वयं परिणमता हूँ।
.. भावरूप परिणमनेवाला हूँ। मेरे भाव मुझसे होते हैं। .. अपनी अचिंत्य शक्तिकी महिमा है। ऐसे भेदज्ञानरूप परिणमनेवाला हूँ। मैं एक स्वरूप रहनेवाला हूँ। अनेकरूप होनेवाला नहीं हूँ। अनेक ज्ञेयोंको पर्याय ज्ञात हो, पर्यायकी अपेक्षासे मेरेमें अनेकता होती है, बाकी मैं स्वभावसे तो एक हूँ। पर्यायकी अनेकतामें मैं पूरा खण्ड-खण्ड नहीं हो जाता हूँ। वह तो पर्याय है, वस्तु स्वरूपसे मैं एक हूँ।
ऐसा यथार्थ ज्ञान हो स्वरूपमें, स्वयंको ग्रहण हो, ऐसी भेदज्ञानकी धारा हो तो उसे स्वानुभूतिकी पर्याय प्रगट हो। ज्ञान परिणमन करके पर्याय आती है। लेकिन उसमें ज्ञात होता है, स्व-पर दोनों ज्ञेय ज्ञात होते हैं। स्व और पर। लेकिन ज्ञान परिणमन करके पर्याय आती है। ज्ञेय परिणमन करके मेरेमें पर्याय नहीं आती है।
.. ज्ञेयका जानपना होता है, परन्तु परिणमन ज्ञानका है। जानपना ज्ञेयको जानता है, परन्तु परिणमन ज्ञानका है। जानपना होता है। जानपना अपना। स्वका, परका जानपना है, परन्तु परिणमन ज्ञानका है। मैं मेरे ज्ञानरूप परिणमता हूँ। ऐसा जानना होता है। स्वपरप्रकाशक पर्याय (होती है)। परिणमन दूसरेका नहीं है, परिणमन मेरा है। जानपना स्वपरप्रकाशक है।
.. पर्यायें हुयी, उसमें ज्ञानने क्या जाना? स्व-पर दोनोंका स्वरूप है। छद्मस्थको एक जगह उपयोग हो वह (जाने), प्रगट उपयोगात्मरूपसे तो वह ऐसा जाने। लब्धमें उसे सब जानपना होता है। प्रगटपने जहाँ उपयोग हो वह जानता है। छद्मस्थ। केवलज्ञानी